महर्षि अगस्त्य और लोपामुद्रा की अनोखी कहानी

महर्षि अगस्त्य और उनकी पत्नी लोपामुद्रा की कहानी एक अद्भुत प्रेम कथा है, जिसमें लोपामुद्रा ने तपस्विनी बनने की शर्त रखी। महर्षि ने उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए धन की व्यवस्था की। इस कहानी में प्रेम, त्याग और संतानोत्पत्ति का अनोखा प्रसंग है। जानें कैसे लोपामुद्रा ने महर्षि को चुनौती दी और उनके बीच का संबंध कैसे विकसित हुआ।
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महर्षि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा

महर्षि अगस्त्य और लोपामुद्रा की अनोखी कहानी


जब लोपामुद्रा ने ऋतुस्नान के बाद हलका सा श्रंगार किया और महर्षि अगस्त्य के सामने आईं, तो उनकी सुंदरता ने महर्षि का ध्यान खींच लिया। लोपामुद्रा की सुंदरता ऐसी थी कि अप्सराएं भी उनके सामने लज्जित हो जाती थीं।


महर्षि अगस्त्य ने लोपामुद्रा की रचना अद्भुत तरीके से की थी। उन्होंने विभिन्न जानवरों के श्रेष्ठ अंगों से एक स्त्री का शरीर बनाया और उसे विदर्भ के राजा को सौंप दिया। लोपामुद्रा का पालन-पोषण राजमहल में हुआ, जिससे उनकी सुंदरता और भी बढ़ गई।


जब महर्षि अगस्त्य को संतानोत्पत्ति की आवश्यकता महसूस हुई, तो उन्होंने लोपामुद्रा का हाथ मांगने के लिए विदर्भ के राजा के पास जाने का निर्णय लिया। राजा ने उनकी शक्तियों को देखते हुए उनकी बात मान ली। लोपामुद्रा ने अपने पिता से कन्यादान की अनुमति मांगी।


महर्षि ने लोपामुद्रा से कहा कि उन्हें तपस्विनी बनकर रहना होगा और इसके लिए विलासिता की वस्त्र और आभूषणों की आवश्यकता नहीं है। लोपामुद्रा ने तुरंत विलासिता को त्यागने का निर्णय लिया और महर्षि के साथ चलने के लिए तैयार हो गई।


लोपामुद्रा की शर्त

महर्षि अगस्त्य की कुटिया में लोपामुद्रा तपस्विनी की तरह रहने लगीं। दोनों ने ब्रह्मचर्य का पालन किया। एक दिन जब लोपामुद्रा ने ऋतुस्नान किया और महर्षि के सामने आईं, तो महर्षि ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की।


लोपामुद्रा ने कहा, "मैं तपस्विनी के आभूषण और वस्त्र पहनकर समागम नहीं कर सकती। इसके लिए उपयुक्त वातावरण होना आवश्यक है।" महर्षि ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन लोपामुद्रा ने अपनी शर्त रख दी।


महर्षि ने लोपामुद्रा की भावनाओं का सम्मान करते हुए धन की व्यवस्था करने का निर्णय लिया। उन्होंने राजा श्रुतर्वा से धन मांगा, लेकिन वहां कोई धन नहीं मिला। फिर उन्होंने राजा ब्रघ्वश्व और राजा त्रसदस्यु से भी धन की याचना की।


आखिरकार, वे दैत्य इल्वल के पास पहुंचे। इल्वल ने महर्षि को देखकर प्रसन्नता व्यक्त की। महर्षि ने इल्वल से धन मांगा और इल्वल ने उन्हें बहुत सारा धन दिया।


समागम और संतानोत्पत्ति

महर्षि अगस्त्य ने उस धन से लोपामुद्रा के लिए वस्त्र, आभूषण और अन्य सामान खरीदे। लोपामुद्रा ने रेशमी वस्त्र पहनकर और आभूषण धारण कर महर्षि के पास समागम के लिए आईं।


महर्षि ने लोपामुद्रा के गर्भ में अपना बीज स्थापित किया। सात वर्षों तक वह बालक लोपामुद्रा के गर्भ में रहा। अंततः, उसका जन्म हुआ और उसका नाम दृढस्यु रखा गया।


दृढस्यु ने जन्म लेते ही वेद और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त किया और बहुत प्रसिद्धि हासिल की।


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