रक्षिता और सिमरन: दृष्टिबाधित धावकों की प्रेरणादायक यात्रा

रक्षिता और सिमरन की कहानी एक प्रेरणा है, जो दृष्टिहीनता के बावजूद एथलेटिक्स में सफलता की नई ऊँचाइयों को छू रही हैं। रक्षिता, जो पहली भारतीय दृष्टिबाधित महिला हैं, जिन्होंने पेरिस पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई किया, और सिमरन, जिन्होंने कांस्य पदक जीता, दोनों ने अपने संघर्षों और उपलब्धियों से साबित किया है कि हिम्मत और मेहनत से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। जानिए उनकी यात्रा के बारे में और कैसे उन्होंने अपने सपनों को साकार किया।
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रक्षिता और सिमरन: दृष्टिबाधित धावकों की प्रेरणादायक यात्रा

रक्षिता की अद्वितीय कहानी

रक्षिता पैरालंपिक की 1500 मीटर श्रेणी में क्वालिफाई करनेवाली पहली भारतीय दृष्टिबाधित धावक हैं.


रक्षिता, जो जन्म से दृष्टिहीन हैं, ने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया है। वे याद करती हैं, "मेरे गाँव के लोग हमेशा कहते थे कि मैं बेकार हूँ।"


अब, 24 साल की उम्र में, रक्षिता भारत की प्रमुख पैरा एथलीटों में से एक बन चुकी हैं। वे गर्व से कहती हैं, "मुझे खुद पर गर्व है।"


कर्नाटक के चिकमंगलूर के एक छोटे से गाँव में जन्मी रक्षिता की माँ का निधन जब वे दो साल की थीं, और दस साल की उम्र में उनके पिता का भी निधन हो गया। उनकी परवरिश उनकी नानी ने की, जो खुद भी सुन और बोल नहीं सकतीं।


रक्षिता बताती हैं, "हम दोनों विकलांग हैं, इसलिए मेरी नानी मुझे बेहतर समझ पाती थीं।"


जब रक्षिता 13 साल की थीं, उनके खेल शिक्षक ने उन्हें बताया कि उनमें एक बेहतरीन धावक बनने की क्षमता है।


गाइड रनर की भूमिका

रक्षिता और सिमरन: दृष्टिबाधित धावकों की प्रेरणादायक यात्रा
भारत की पैरालंपिक एथलीट की कहानी, जो देख नहीं सकतीं पर हौसले ने बनाया ट्रैक की उड़नपरी


रक्षिता को यह समझने में समय लगा कि वे कैसे दौड़ेंगी। उनके शिक्षक ने उन्हें बताया कि दृष्टिहीन धावक गाइड रनर के साथ दौड़ते हैं।


गाइड रनर के साथ दौड़ने के लिए, रक्षिता ने टेदर का उपयोग करना सीखा, जो एक छोटी पट्टी होती है।


इससे उनकी ज़िंदगी में एक नया मोड़ आया।


रक्षिता और सिमरन: दृष्टिबाधित धावकों की प्रेरणादायक यात्रा
राहुल और रक्षिता आठ साल से साथ ट्रेनिंग कर रहे हैं.


रक्षिता के गाइड रनर राहुल बालकृष्ण ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें बेहतर प्रशिक्षण के लिए बेंगलुरु लाने का निर्णय लिया।


सफलता की ओर कदम

रक्षिता और राहुल ने 2018 और 2023 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते। जब वे गाँव लौटे, तो उनका भव्य स्वागत हुआ।


रक्षिता ने कहा, "वही लोग जो पहले मुझे ताने देते थे, अब मेरी जयकार कर रहे थे।"


2024 में, रक्षिता पेरिस पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली दृष्टिबाधित भारतीय महिला बनीं।


हालांकि, पेरिस में वे मेडल नहीं जीत पाईं।


रक्षिता और सिमरन: दृष्टिबाधित धावकों की प्रेरणादायक यात्रा
पैरिस पैरालंपिक की 100 मीटर दौड़ में भागते अभय (दाएं) और सिमरन (बाएं).


सिमरन की सफलता

सिमरन शर्मा, जो पेरिस पैरालंपिक में क्वालिफाई करने वाली दूसरी दृष्टिहीन धावक हैं, ने कांस्य पदक जीता।


सिमरन ने बताया, "जब मैंने दौड़ना शुरू किया, तो मैं अकेले भागती थी।"


साल 2021 में, टोक्यो पैरालंपिक में दौड़ते समय उन्हें गाइड रनर की आवश्यकता महसूस हुई।


सिमरन ने अभय कुमार को अपना गाइड रनर बनाया, और दोनों ने मिलकर कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया।


रक्षिता और सिमरन: दृष्टिबाधित धावकों की प्रेरणादायक यात्रा
सिमरन और अभय ने पैरिस पैरालंपिक की 200 मीटर की दौड़ में ब्रॉन्ज़ मेडल जीता.


सरकार की भूमिका

सिमरन और अभय की जोड़ी का भविष्य अनिश्चित है, लेकिन वे अगले पैरालंपिक पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।


सरकार ने गाइड रनरों के लिए कुछ सहायता प्रदान की है, लेकिन दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता है।


रक्षिता और सिमरन ने स्पॉन्सरशिप के माध्यम से अपने प्रशिक्षण का खर्च उठाने का निर्णय लिया है।


राहुल और अभय चाहते हैं कि उन्हें भी सरकारी नौकरियों में खेल कोटे का लाभ मिले।