भारतीय सिनेमा का 25 साल का सफर: बदलाव और नई ऊंचाइयाँ

भारतीय सिनेमा ने पिछले 25 वर्षों में कई बदलाव देखे हैं। 21वीं सदी की शुरुआत में सीमित बजट और साधारण सेट से लेकर आज के बड़े बजट और मल्टीप्लेक्स तक, सिनेमा की दुनिया ने एक लंबा सफर तय किया है। तकनीक, दर्शकों की बदलती पसंद और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने इस उद्योग को नया आकार दिया है। जानें कैसे सिनेमा ने अपने सफर में कई मील के पत्थर पार किए हैं।
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भारतीय सिनेमा का 25 साल का सफर: बदलाव और नई ऊंचाइयाँ

भारतीय सिनेमा का विकास: 25 वर्षों का सफर

भारतीय सिनेमा ने पिछले 25 वर्षों में अभूतपूर्व परिवर्तन देखे हैं। 21वीं सदी की शुरुआत में, फिल्मों का बजट बहुत कम था, सेट छोटे थे, और सितारों के पास अपनी वैनिटी वैन नहीं होती थी। उस समय वीएफएक्स का उपयोग भी नहीं होता था और मल्टिप्लेक्स का अस्तित्व नहीं था। फिर भी, दर्शक सितारों के प्रति दीवाने थे। 2025 तक, सिनेमा की दुनिया में कई बदलाव आए हैं।


तकनीक ने कहानी कहने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। बजट में वृद्धि ने कल्पना को नई उड़ान दी है। पहले 50 करोड़ के बजट से फिल्में हिट होती थीं, जबकि अब भारतीय फिल्में 4000 करोड़ तक के बजट में बन रही हैं। मल्टिप्लेक्स और ओटीटी प्लेटफॉर्म ने कमाई के नए रास्ते खोले हैं, और क्षेत्रीय कहानियों ने बंबईया सिनेमा में अपनी जगह बना ली है। आइए, देखते हैं कि भारतीय सिनेमा ने पिछले 25 वर्षों में कैसे बदलाव किए हैं।


मसाला, देशप्रेम और प्यार का सुनहरा दौर (2000-2004)

21वीं सदी की शुरुआत में भारतीय सिनेमा ने जश्न का माहौल बनाया। इस समय दर्शक बड़े परदे पर शानदार रोमांस और भव्य सेट के दीवाने थे। फिल्में मुख्यतः सिंगल स्क्रीन थिएटरों के लिए बनाई जाती थीं, जहां इमोशनल ड्रामा और 'सीटी मार' सीन का महत्व था। इसी दौरान सिंगल स्क्रीन से मल्टीप्लेक्स संस्कृति की शुरुआत हुई।


भारतीय सिनेमा का 25 साल का सफर: बदलाव और नई ऊंचाइयाँ


साल 2001 में सनी देओल की 'गदर: एक प्रेम कथा' ने बॉक्स ऑफिस पर सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। इस फिल्म ने लगभग 77 करोड़ रुपये की कमाई की। संजय लीला भंसाली, करण जौहर और यशराज फिल्म्स की 'देवदास', 'कभी खुशी कभी गम' और 'वीर जारा' जैसी फिल्मों ने रोमांस को नया आयाम दिया।


नई सोच और मल्टीप्लेक्स का उदय (2005-2009)

इस दौर में भारतीय शहरों में मल्टीप्लेक्स की संख्या में वृद्धि हुई। नए दर्शकों की अपेक्षाएँ बदल गईं, और उन्हें रीयलिस्टिक कंटेंट की तलाश थी। इस बदलाव के चलते सिनेमा में डार्क कॉमेडी और छोटे शहरों की कहानियों का प्रवेश हुआ। इम्तियाज अली और राकेश ओमप्रकाश मेहरा जैसे निर्देशकों ने नई दिशा में कदम बढ़ाया।


भारतीय सिनेमा का 25 साल का सफर: बदलाव और नई ऊंचाइयाँ


इस दौरान, डिजिटल सिनेमा प्रोजेक्शन का उपयोग बढ़ा और वीएफएक्स का प्रयोग भी बढ़ने लगा। 2008 में आमिर खान की 'गजनी' ने 100 करोड़ का आंकड़ा पार किया, जो भारतीय सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ।


200 करोड़ क्लब और साउथ का प्रभाव (2010-2015)

2010 से 2014 का समय रिकॉर्ड तोड़ कमाई और सुपरस्टार्स के जलवे का था। इस दौरान सलमान खान, शाहरुख खान और आमिर खान ने बॉक्स ऑफिस पर राज किया। साउथ इंडियन फिल्मों के रीमेक का चलन बढ़ा।


भारतीय सिनेमा का 25 साल का सफर: बदलाव और नई ऊंचाइयाँ


इस समय 3D फिल्मों का आगमन हुआ और 100 करोड़ की कमाई सामान्य हो गई। शाहरुख खान की 'चेन्नई एक्सप्रेस' और आमिर खान की 'धूम 3' ने 200 करोड़ क्लब में प्रवेश किया।


बाहुबली और ओटीटी का उदय (2016-2020)

इस दौर में साउथ इंडियन सिनेमा ने पूरे देश के दर्शकों को आकर्षित किया। पैन-इंडिया फिल्में और कंटेंट-ड्रिवेन फिल्में प्रमुखता पाने लगीं।


भारतीय सिनेमा का 25 साल का सफर: बदलाव और नई ऊंचाइयाँ


ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने दर्शकों को विभिन्न भाषाओं का कंटेंट उपलब्ध कराया। एसएस राजामौली की 'बाहुबली' ने भारतीय सिनेमा में एक नया अध्याय लिखा।


महामारी और सिनेमा बनाम ओटीटी (2021-2025)

2020 से 2025 का समय भारतीय सिनेमा के लिए चुनौतीपूर्ण रहा। कोरोना महामारी ने थिएटर्स को बंद कर दिया, जिससे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को बढ़ावा मिला।



इस दौरान, 'केजीएफ', 'आरआरआर', 'पुष्पा' और 'जवान' जैसी फिल्मों ने 1000 करोड़ का क्लब बनाया।


25 वर्षों में दर्शकों का बदलाव

पिछले 25 वर्षों में, भारतीय सिनेमा ने खुद को सीमित दायरे से बाहर निकालकर एक व्यापक पहचान बनाई है। आज दर्शक विश्वस्तरीय सिनेमा की मांग कर रहे हैं।