कफ सिरप में खतरनाक केमिकल का खतरा: विशेषज्ञ की चेतावनी

एम्स के डॉ. पंकज हरी ने कफ सिरप में खतरनाक रसायनों की मौजूदगी के गंभीर प्रभावों के बारे में चेतावनी दी है। उन्होंने बताया कि यदि इन रसायनों का सेवन किया जाए, तो इसके परिणाम महज तीन दिनों में सामने आ सकते हैं। 1998 में गुड़गांव में हुई एक घटना का जिक्र करते हुए, उन्होंने बताया कि कैसे दूषित दवाओं के कारण कई बच्चों की जान गई थी। जानें, क्या कदम उठाने की जरूरत है और कैसे मरीजों की जान बचाई जा सकती है।
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कफ सिरप में खतरनाक केमिकल का खतरा: विशेषज्ञ की चेतावनी

खतरनाक केमिकल का प्रभाव

नई दिल्ली के एम्स के पीडियाट्रिक विभाग के प्रमुख, डॉ. पंकज हरी ने बताया है कि यदि किसी कफ सिरप में हानिकारक रसायन मौजूद हो, तो इसके प्रभाव तीन दिनों के भीतर ही दिखाई देने लगते हैं। यदि मरीज को अस्पताल पहुंचाने में देरी होती है, तो उनकी जान बचाना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि 1998 में गुड़गांव में इसी तरह की बीमारी फैली थी, जिसमें कई बच्चों की मृत्यु हुई थी।


डॉ. पंकज ने स्पष्ट किया कि किडनी की खराबी या मृत्यु कफ सिरप के सेवन से नहीं होती है। कफ सिरप के घटक यदि अधिक मात्रा में लिए जाएं, तो इससे नींद अधिक आएगी और व्यक्ति सुस्त महसूस करेगा, लेकिन इससे मृत्यु नहीं होती। समस्या तब उत्पन्न होती है जब कफ सिरप में डाइएथेलिन ग्लाइकोल जैसे रसायन मिल जाते हैं, जो सस्ते घटक के रूप में उपयोग किए जाते हैं।


डाइएथेलिन ग्लाइकोल का खतरा

यह रसायन शरीर में प्रवेश कर रक्त संचार के माध्यम से किडनी तक पहुंचता है, जहां यह किडनी के हिस्सों को नुकसान पहुंचाता है। इसके परिणामस्वरूप, यूरिन आना बंद हो जाता है और किडनी फेलियर की स्थिति उत्पन्न होती है, जिससे मस्तिष्क में भी समस्याएं आ सकती हैं, और मरीज कोमा में जा सकता है।


1998 की घटना

डॉ. पंकज ने बताया कि 1998 में जब वह सहायक प्रोफेसर थे, तब गुड़गांव से कई बच्चे किडनी फेलियर और बेहोशी की शिकायत लेकर आए थे। प्रारंभिक जांच में कोई वायरस नहीं मिला, लेकिन बाद में पता चला कि बच्चे जिन दवाओं का सेवन कर रहे थे, वे सही तरीके से लेबल नहीं की गई थीं। जब इन दवाओं का परीक्षण किया गया, तो उनमें डाइएथेलिन ग्लाइकोल की उच्च मात्रा पाई गई, जिससे बच्चों की मृत्यु हुई।


सीखने की आवश्यकता

डॉ. पंकज ने कहा कि 1998 में दवाओं की गुणवत्ता की कमी थी और प्रैक्टिशनर या क्वैक डॉक्टरों द्वारा गलत तरीके से दवाएं दी जा रही थीं। यदि दवाएं दूषित हो रही हैं, तो यह गंभीर चिंता का विषय है। यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि दवाओं की नियमित जांच की जाए।


ड्रग कंट्रोलर की भूमिका

डॉ. पंकज ने कहा कि इस मामले में जिम्मेदारी ड्रग कंट्रोलर की है, न कि डॉक्टरों की। 1998 में पेरासिटामोल में भी इसी तरह की समस्या थी। दवा की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है, न कि दवा पर प्रतिबंध लगाने की।


मरीज की जान बचाने की संभावना

डॉ. पंकज ने कहा कि दवा की मात्रा पर निर्भर करता है। यदि दवा की मात्रा कम ली जाए, तो लक्षण हल्के हो सकते हैं और मरीज जल्दी ठीक हो सकते हैं। यदि अस्पताल जल्दी पहुंचा जाए, तो बच्चों की डायलिसिस भी की जा सकती है। इस स्थिति का मुकाबला करने के लिए एक नई दवा भी उपलब्ध है, जो मरीज की जान बचा सकती है।