दलाई लामा का 90वां जन्मदिन: जीवन की अनकही कहानियाँ

तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा आज अपने 90वें जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं। जानें उनके जीवन की अनकही कहानियाँ, उनके राजनीतिक संघर्ष और तिब्बत के लोगों के लिए उनके योगदान के बारे में। दलाई लामा का जीवन एक प्रेरणा है, जो 60 वर्षों से अधिक समय से तिब्बत के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
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दलाई लामा का 90वां जन्मदिन: जीवन की अनकही कहानियाँ

दलाई लामा का जन्मदिन

तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा आज, 06 जुलाई को अपने 90वें जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं। स्वयं को एक साधारण भिक्षु मानने वाले दलाई लामा ने 60 वर्षों से अधिक समय तक तिब्बत के लोगों के अधिकारों और उनके हितों को वैश्विक मंच पर उजागर किया है। उनका कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से भारत रहा है। दलाई लामा नाम केवल एक पद है; वे 14वें दलाई लामा हैं, जिनका असली नाम ल्हामो धोंडुप है। आइए, उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारियों पर नजर डालते हैं...


जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

ल्हामो धोंडुप का जन्म 06 जुलाई 1935 को चीन के किंघई प्रांत में एक किसान परिवार में हुआ था। जब वे केवल 2 वर्ष के थे, तब एक खोजी दल ने उन्हें तिब्बत के आध्यात्मिक और लौकिक नेता के रूप में पहचाना। 1950 में, चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया, जिसे उन्होंने 'शांतिपूर्ण मुक्ति' का नाम दिया।


राजनीतिक भूमिका

कुछ समय बाद, किशोर दलाई लामा ने राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया। उन्होंने माओत्से तुंग और अन्य चीनी नेताओं से मिलने के लिए बीजिंग की यात्रा की। 9 साल बाद, तिब्बत में विद्रोह के चलते उन्हें डर था कि उनका अपहरण हो सकता है। चीनी सेना ने विद्रोह को दबाने के लिए अत्याचार किए।


17 मार्च 1959 को, उन्हें एक सैनिक के रूप में भारत लाया गया, जहां उनका स्वागत बड़े उत्साह से किया गया। भारत ने हमेशा तिब्बत को एक स्वतंत्र देश माना है और उनके साथ मजबूत सांस्कृतिक और वाणिज्यिक संबंध बनाए रखे हैं। 1954 में, भारत ने चीन के साथ पंचशील समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें तिब्बत को 'चीन के तिब्बत क्षेत्र' के रूप में स्वीकार किया गया। भारत आने के बाद, दलाई लामा का दल कुछ समय के लिए अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ में रुका। नेहरू से मुलाकात के बाद, भारत ने 03 अप्रैल 1959 को उन्हें शरण दी।


धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, पहले से ही तिब्बती निर्वासितों के लिए एक सुरक्षित स्थान बन चुका था। दलाई लामा ने वहां स्थायी रूप से बसने का निर्णय लिया और निर्वासित तिब्बती सरकार की स्थापना की। इस कदम से चीन नाराज हुआ और उन्होंने बीजिंग के साथ संबंध सुधारने की कई कोशिशें की, लेकिन हर बार असफल रहे। 1988 में, उन्होंने चीन से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग छोड़कर सांस्कृतिक और धार्मिक स्वायत्तता की मांग करने का निर्णय लिया।


2011 में, दलाई लामा ने अपनी राजनीतिक भूमिका समाप्त करने की घोषणा की और जिम्मेदारियों को निर्वाचित नेता को सौंप दिया। हालांकि, वे अभी भी सक्रिय हैं और उनके पास आगंतुकों का आना जारी है।