OECD रिपोर्ट: भारतीय पेशेवरों की वैश्विक मांग में वृद्धि

OECD की नई रिपोर्ट में भारतीय पेशेवरों की वैश्विक मांग में वृद्धि का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय श्रमिक अब दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, विशेषकर हेल्थकेयर, तकनीकी और निर्माण में। 2023 में लगभग 6 लाख भारतीयों ने OECD देशों में प्रवास किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8% अधिक है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय नौकरी बाजार में भागीदारी बढ़ रही है। जानें इस रिपोर्ट में और क्या कहा गया है और कैसे भारत वैश्विक श्रम बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी बन रहा है।
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OECD रिपोर्ट: भारतीय पेशेवरों की वैश्विक मांग में वृद्धि

OECD की रिपोर्ट

OECD रिपोर्ट: भारतीय पेशेवरों की वैश्विक मांग में वृद्धि


भारतीय श्रमिक अब वैश्विक श्रम बाजार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। OECD की इंटरनेशनल माइग्रेशन आउटलुक 2025 रिपोर्ट के अनुसार, भारत उन देशों में अग्रणी है, जहां से विकसित देशों में कुशल श्रमिकों की मांग बढ़ रही है। भारतीय पेशेवर और श्रमिक, अस्पतालों से लेकर तकनीकी कंपनियों तक, विभिन्न क्षेत्रों में काम की कमी को पूरा कर रहे हैं। 2023 में लगभग 6 लाख भारतीयों ने OECD देशों में प्रवास किया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 8% अधिक है। भारत अब नए प्रवासियों का प्रमुख स्रोत बन गया है। वैश्विक प्रवासन अब केवल कम वेतन वाले श्रमिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कुशल और अर्ध-कुशल पेशेवरों की भी भागीदारी है।


हेल्थकेयर सेक्टर में भारतीयों का दबदबा

OECD के आंकड़ों के अनुसार, सदस्य देशों में विदेशी डॉक्टरों में भारत शीर्ष तीन में और नर्सों में शीर्ष दो देशों में शामिल है। 2021 से 2023 के बीच OECD देशों में हर 10 प्रवासी डॉक्टरों में से 4 और हर 3 नर्सों में से 1 एशिया से आई, जिनमें भारत की हिस्सेदारी सबसे अधिक रही। भारत का हेल्थकेयर माइग्रेशन अब यूके के हेल्थ एंड केयर वर्कर वीज़ा और आयरलैंड के इंटरनेशनल मेडिकल ग्रेजुएट ट्रेनिंग प्रोग्राम जैसे औपचारिक चैनलों से भी समर्थन प्राप्त कर रहा है, जिससे भारतीय पेशेवरों को विदेशों में काम और प्रशिक्षण के अवसर मिल रहे हैं।


नई नौकरी की राहें और देशों के बीच समझौते

हेल्थकेयर के अलावा, भारतीय श्रमिकों की उपस्थिति बुजुर्गों की देखभाल, निर्माण और तकनीकी क्षेत्रों में भी बढ़ी है। ऑस्ट्रेलिया का Aged Care Industry Labour Agreement और 2024 में हुआ भारत-ग्रीस माइग्रेशन पार्टनरशिप समझौता इसका उदाहरण हैं। ये सभी संकेत करते हैं कि कई देश अब भारत के साथ सीधे समझौते कर कुशल श्रमिकों की भर्ती की संगठित प्रक्रिया अपना रहे हैं।


नियम सख्त हुए लेकिन भारतीयों की मांग बनी रही

कई देशों ने वीज़ा नियमों को सख्त किया है, जैसे पोलैंड में कॉन्ट्रैक्ट जमा करना अनिवार्य है, लातविया में न्यूनतम वेतन निर्धारित किया गया है और फिनलैंड में वेरिफिकेशन सिस्टम लागू किया गया है। इसके बावजूद, भारतीय श्रमिकों की मांग में कमी नहीं आई है, बल्कि भर्ती प्रक्रिया अब अधिक पारदर्शी और कौशल आधारित हो गई है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि अंतरराष्ट्रीय नौकरी बाजार में भारतीय महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, विशेषकर शिक्षा और देखभाल के क्षेत्रों में। इसके साथ ही, विदेश में पढ़ाई कर रहे कई भारतीय छात्र अब वहीं नौकरी करने लगे हैं, जिससे हेल्थ, आईटी और रिसर्च क्षेत्रों में भारतीयों की उपस्थिति और बढ़ गई है।


दुनिया जिस वर्कफोर्स पर निर्भर है

OECD की रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि भारत अब केवल श्रमिक नहीं भेज रहा है, बल्कि स्किल्स का निर्यात कर रहा है। डॉक्टरों से लेकर सॉफ्टवेयर इंजीनियरों तक, भारतीय पेशेवर दुनिया के हर कोने में काम की कमी को पूरा कर रहे हैं। हालांकि, रिपोर्ट यह भी चेतावनी देती है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भारत को अपने देश में वर्कफोर्स प्लानिंग को मजबूत करना होगा, ताकि घरेलू क्षेत्रों, विशेषकर हेल्थकेयर में कमी न आए।