हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की अनोखी जन्म कथा

इस लेख में हम मकरध्वज के जन्म की अद्भुत कथा का वर्णन करेंगे, जो हनुमान जी के ब्रह्मचर्य को चुनौती नहीं देती। जानें कैसे एक बूंद पसीने से मकरध्वज का जन्म हुआ और उनकी कहानी में क्या खास है। यह कथा न केवल धार्मिक मान्यताओं को दर्शाती है, बल्कि हनुमान जी की महानता को भी उजागर करती है।
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हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की अनोखी जन्म कथा

मकरध्वज की जन्म कथा

हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज की अनोखी जन्म कथा

मकरध्वज की जन्म कथा

Makaradhwaja Birth Katha: हनुमान जी, जो भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त माने जाते हैं, को अमरता का वरदान प्राप्त है। कहा जाता है कि वे कलियुग में भी धरती पर विद्यमान हैं। हनुमान जी को अखंड ब्रह्मचारी के रूप में जाना जाता है और उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन किया। फिर भी, पौराणिक ग्रंथों में उनके पुत्र का उल्लेख मिलता है, जिसका नाम मकरध्वज है।

मकरध्वज का जन्म एक अद्भुत और चमत्कारी तरीके से हुआ, जिससे यह सिद्ध होता है कि हनुमान जी का ब्रह्मचर्य कभी भंग नहीं हुआ। इस संबंध में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। आइए, इस कथा को जानते हैं।

मकरध्वज के जन्म की कथा

मकरध्वज की कथा वाल्मीकि रामायण और अन्य पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है। मान्यता है कि जब हनुमान जी ने माता सीता से भेंट की, उसके बाद उन्हें रावण के दरबार में पेश किया गया, जहां उनकी पूंछ में आग लगा दी गई। इसके बाद, उन्होंने अपनी जलती हुई पूंछ से लंका को जला दिया। लंका के दहन के बाद, हनुमान जी ने अपनी पूंछ की आग को बुझाने के लिए समुद्र में कूद पड़े।

लंका की भीषण आग के कारण हनुमान जी का शरीर अत्यधिक गर्म हो गया था। जब वे समुद्र के ठंडे जल में पहुंचे, तो उनके शरीर से पसीने की एक बूंद समुद्र में गिर गई। उस समय समुद्र में एक विशाल मछली थी, जिसने अनजाने में हनुमान जी की उस बूंद को निगल लिया। उस बूंद के प्रभाव से मछली गर्भवती हो गई।

मकर और वानर के रूप में जन्म

कुछ समय बाद, पाताल लोक के राजा अहिरावण ने उस मछली को पकड़ लिया। जब मछली का पेट काटा गया, तो उसमें से एक बालक निकला, जो मकर और वानर दोनों के रूप में जन्मा था। इसके बाद, उस बालक को अहिरावण ने अपनी सेवा में ले लिया और पातालपुरी का द्वारपाल बना दिया। रावण से युद्ध के दौरान, अहिरावण भगवान राम और लक्ष्मण को पाताल लोक ले गया।

जब हनुमान जी भगवान राम और लक्ष्मण को बचाने पाताल लोक पहुंचे, तो उनकी मकरध्वज से भेंट हुई। द्वार पर मकरध्वज और हनुमान जी के बीच युद्ध हुआ। फिर मकरध्वज ने अपने जन्म की कथा सुनाई, जिससे हनुमान जी को पता चला कि वह उनके पुत्र हैं।