स्वर्ण मंदिर: सोने की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व

स्वर्ण मंदिर, जो अमृतसर में स्थित है, सिख धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसकी भव्यता और सोने की परतें इसे विशेष बनाती हैं। इस मंदिर में अब तक 900 किलो से अधिक सोना लगाया जा चुका है, जिसकी कीमत 12 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। बैसाखी और दिवाली जैसे उत्सव यहां विशेष रूप से मनाए जाते हैं। जानें इस मंदिर के इतिहास, जीर्णोद्धार और इसके महत्व के बारे में।
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स्वर्ण मंदिर: सोने की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व

स्वर्ण मंदिर का परिचय

स्वर्ण मंदिर: सोने की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व

अमृतसर का स्वर्ण मंदिर

स्वर्ण मंदिर: भारत में कई मंदिर हैं जिनमें सोने का उपयोग किया गया है, लेकिन पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर अपनी भव्यता के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। यह आध्यात्मिकता, एकता और सेवा का प्रतीक है। जब आप इसके पास पहुंचते हैं, तो अमृत सरोवर के शांत जल पर सुनहरे रंग की झिलमिलाती परछाई आपको मंत्रमुग्ध कर देती है। इस मंदिर का नाम गुंबद पर जड़े शुद्ध सोने की परतों के कारण पड़ा है।

स्वर्ण मंदिर, जिसे गोल्डन टेंपल भी कहा जाता है, आधिकारिक तौर पर श्री हरमंदिर साहिब के नाम से जाना जाता है। यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शन करने और लंगर का आनंद लेने आते हैं। शाम के समय, जब मंदिर की रोशनी में सोने की चमक बढ़ती है, तो दृश्य और भी मनमोहक हो जाता है। आइए जानते हैं कि इस मंदिर में कितना सोना लगा है और इसके जीर्णोद्धार के बारे में।

स्वर्ण मंदिर सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। इसका नाम “हरमंदिर” से लिया गया है, जिसका अर्थ है ईश्वर का मंदिर। इसे चौथे गुरु रामदास साहिब ने स्थापित किया था, जिन्होंने भूमि खरीदने के लिए अपने पैतृक गांव के जमींदारों से भुगतान किया था। हालांकि, इसका निर्माण पांचवें गुरु, गुरु अर्जन देव ने 1588 में किया था।


750 किलो सोने से सजाए गए ऊपरी मंजिलें

750 किलो सोने से मढ़वाई गईं ऊपरी मंजिलें

स्वर्ण मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है, जिसमें संगमरमर की नक्काशी जैसी विशेषताएं जोड़ी गई हैं। मंदिर का निचला तल अमृत सरोवर से घिरा हुआ है और इसमें चार प्रवेश द्वार हैं, जो सिख धर्म की सभी जातियों के प्रति उदारता का प्रतीक हैं।

भारत के सिख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह ने 1799 से 1849 के बीच मंदिर की ऊपरी मंजिलों को 750 किलो शुद्ध सोने से सजाया। यह सोना 24 कैरेट का है, जिसकी चमक कभी नहीं जाती। हालांकि, यह कहना गलत है कि इसकी दीवारें पूरी तरह से सोने की हैं; केवल सोने की परत चढ़ाई गई है।


2024 में सोने का जीर्णोद्धार

साल 2024 में 160 किलो सोना इस्तेमाल हुआ

2024 में स्वर्ण मंदिर का एक और जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें 160 किलो सोना लगाया गया। मंदिर के चारों गुंबदों पर सोने की परत चढ़ाई गई। यह कार्य भक्तों के स्वैच्छिक दान से किया गया था। उस समय, स्वयंसेवी संगठन के प्रमुख बाबा कश्मीर सिंह भूरीवाले ने बताया कि हर गुंबद पर 40 किलो सोने का उपयोग किया गया।

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) के प्रवक्ता दिलजीत सिंह बेदी ने कहा कि समिति ने मंदिर को सुंदर बनाने के लिए चारों प्रवेश द्वारों के गुंबदों पर सोना चढ़ाने का निर्णय लिया। समिति ने केवल ‘शुद्ध सोने’ का उपयोग किया, जिसके लिए 22 कैरेट सोने को पहले 24 कैरेट में शुद्ध किया गया।


स्वर्ण मंदिर में कुल सोने की मात्रा

अबतक कितने किलो इस्तेमाल किया गया सोना?

अब तक स्वर्ण मंदिर में 900 किलो से अधिक सोना लगाया जा चुका है, जिसकी कीमत 12 हजार करोड़ रुपए से अधिक है। यही कारण है कि स्वर्ण मंदिर की भव्य वास्तुकला और शांत वातावरण दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। जो भी श्रद्धालु एक बार स्वर्ण मंदिर जाता है, वह बार-बार आध्यात्मिक अनुभव को जीने की कोशिश करता है। यहां बैसाखी और दिवाली जैसे उत्सव विशेष रूप से मनाए जाते हैं।


बैसाखी और दिवाली का महत्व

बैसाखी और दिवाली क्यों है स्वर्ण मंदिर के लिए खास?

बैसाखी और दिवाली स्वर्ण मंदिर के लिए विशेष हैं क्योंकि ये सिख धर्म के इतिहास से जुड़े हैं। बैसाखी पर गुरु अर्जन देव ने मंदिर की नींव रखी थी, जबकि दिवाली पर गुरु हरगोबिंद सिंह की रिहाई हुई थी। इन दिनों को सिख उत्सव और प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं।


स्वर्ण मंदिर पर हमले

स्वर्ण मंदिर पर कई बार हुआ हमला

स्वर्ण मंदिर पर मुगलकाल में कई बार आक्रमण हुए। 18वीं शताब्दी में अफगान आक्रमणों के दौरान इसे कई बार क्षति पहुंचाई गई। औरंगजेब ने इसे निशाना बनाया था। सिख समुदाय ने हर बार इसे पुनर्निर्मित किया। 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने इसके सौंदर्यीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, सबसे दुखद घटना ऑपरेशन ब्लू स्टार थी, जब भारतीय सेना ने आतंकियों को खदेड़ने के लिए एक सैन्य अभियान चलाया। इस दौरान मंदिर को भारी नुकसान हुआ, लेकिन वह फिर से अपनी भव्यता के साथ चमका।