सोम प्रदोष व्रत 2025: जानें कथा और भगवान शिव की कृपा पाने के उपाय

सोम प्रदोष व्रत 2025 का महत्व और इसकी कथा जानें। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने के लिए किया जाता है। इस लेख में प्रदोष व्रत की विधि और कथा का वर्णन किया गया है, जो जीवन में सुख और समृद्धि लाने में सहायक है। जानें कैसे इस व्रत के माध्यम से आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
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सोम प्रदोष व्रत 2025: जानें कथा और भगवान शिव की कृपा पाने के उपाय

सोम प्रदोष व्रत 2025

सोम प्रदोष व्रत 2025: जानें कथा और भगवान शिव की कृपा पाने के उपाय

प्रदोष व्रत 2025


सोम प्रदोष व्रत की कथा: त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत का आयोजन किया जाता है। हर महीने दो बार, कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर यह व्रत मनाया जाता है। जिस दिन यह व्रत होता है, वह दिन विशेष रूप से उस दिन के नाम पर जाना जाता है। आज सोमवार है, इसलिए आज सोम प्रदोष व्रत है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विधिपूर्वक की जाती है।


इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा से उनकी कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के सभी दुख समाप्त हो जाते हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना अनिवार्य है। ऐसा माना जाता है कि यदि पूजा के समय व्रत कथा का पाठ किया जाए, तो जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है। इसके बिना प्रदोष व्रत की पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत की कथा।


सोम प्रदोष व्रत की कथा (Som Pradosh Vrat Katha)


सोम प्रदोष व्रत से जुड़ी एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का निधन हो चुका था और वह अपने पुत्र के साथ भिक्षाटन करके जीवन यापन कर रही थी। ब्राह्मणी की स्थिति बहुत खराब थी, लेकिन वह प्रदोष का व्रत नियमित रूप से करती थी। इसी तरह उनका जीवन चलता रहा।


एक दिन, जब ब्राह्मणी भिक्षा मांगकर लौट रही थी, उसने एक घायल युवक को देखा और उसे अपने घर ले आई। वह युवक विदर्भ राज्य का राजकुमार था, जो अपने शत्रुओं से बच रहा था। राजकुमार ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ रहने लगा। एक बार, एक गंदर्भ कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई।


गंदर्भ कन्या का नाम अंशुमति था। उसने अपने माता-पिता को राजकुमार के बारे में बताया। फिर एक रात, भगवान शिव ने अंशुमति के माता-पिता को स्वप्न में आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार से करें। इसके बाद, अंशुमति के माता-पिता ने राजकुमार के साथ उसका विवाह कर दिया। इसके बाद, गंदर्भ राजा के सहयोग से राजकुमार ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की।


राजकुमार ने ब्राह्मणी के पुत्र को अपने राज्य का राजकुमार बना दिया। इस प्रकार, ब्राह्मणी के जीवन में खुशियों की शुरुआत हुई। यह सब ब्राह्मणी द्वारा किए गए प्रदोष व्रत के प्रभाव से हुआ। महादेव ने जिस प्रकार ब्राह्मणी और उसके पुत्र पर कृपा की, उसी प्रकार वे सभी का कल्याण करते हैं।


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