संकष्टी चतुर्थी 2025: गणेश की पूजा का महत्व और विधि
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी 2025Image Credit source: AI
संकष्टी चतुर्थी 2025 की तिथि: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाने वाली संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित होती है। यह व्रत हर महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है, लेकिन जब यह शनिवार या मंगलवार को आता है, तो इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक गणेश जी की पूजा करने से सभी संकट समाप्त होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। पंचांग के अनुसार, 2025 में यह व्रत 8 नवंबर, शनिवार को मनाया जाएगा।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि
सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। भगवान गणेश की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, दूर्वा, लाल फूल और जनेऊ अर्पित करें। गणेश जी को मोदक या तिल के लड्डू का भोग लगाएं, क्योंकि तिल इस व्रत में विशेष महत्व रखता है। धूप-दीप जलाकर ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करें और संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ें। शाम को चंद्रोदय के समय चंद्रमा को जल, दूध, चंदन और अक्षत मिलाकर अर्घ्य दें। चंद्र दर्शन और अर्घ्य के बाद सात्विक भोजन या फलाहार ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
चंद्र दर्शन का महत्व
संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से आरंभ होता है और चंद्र दर्शन के बाद ही इसे पूर्ण माना जाता है। इस दिन चंद्रमा की पूजा और अर्घ्य का विशेष महत्व है।
व्रत का पारण: संकष्टी चतुर्थी का व्रत तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक व्रती चंद्रमा के दर्शन न कर ले और उन्हें अर्घ्य न दे। चंद्र दर्शन के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है।
चंद्र दोष का निवारण: ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, जो लोग चंद्र दोष से प्रभावित होते हैं, उन्हें इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने से चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है।
शुभ फल की प्राप्ति: चंद्रमा को अर्घ्य देने से व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व
यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश के ‘गणाधिप’ स्वरूप की पूजा की जाती है, जो गणों के अधिपति हैं। इस दिन व्रत रखने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है। इसलिए इसे संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। भगवान गणेश को बुद्धि, ज्ञान और विवेक का देवता माना जाता है। उनकी आराधना से बुद्धि में वृद्धि होती है और हर कार्य में सफलता मिलती है।
