विवाह के दौरान सूतक या पातक का सामना: क्या करें?

विवाह के दौरान सूतक या पातक लगने पर क्या करना चाहिए? जानें इस लेख में शास्त्रों के अनुसार सही उपाय और विधियाँ। विवाह के समय अनहोनी स्थितियों का सामना करने के लिए आवश्यक जानकारी प्राप्त करें। क्या विवाह को रोका जाए या आगे बढ़ाया जाए? इस लेख में सभी सवालों के जवाब दिए गए हैं।
 | 
विवाह के दौरान सूतक या पातक का सामना: क्या करें?

विवाह के समय सूतक या पातक का प्रभाव

विवाह के दौरान सूतक या पातक का सामना: क्या करें?

विवाह के दौरान यदि अचानक सूतक या पातक लग जाए तो क्या करें?

हिंदू धर्म में विवाह को एक महत्वपूर्ण और मांगलिक संस्कार माना जाता है। इसीलिए, विवाह के लिए शुभ मुहूर्त का चयन किया जाता है और सभी विधियों को देवताओं की उपस्थिति में संपन्न किया जाता है। लेकिन कभी-कभी अप्रत्याशित घटनाएं घटित हो जाती हैं, जैसे कि विवाह के समय घर में किसी बच्चे का जन्म (सूतक) या किसी करीबी का निधन (पातक)। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या विवाह को रोका जाए या आगे बढ़ाया जाए।

सूतक (जन्म अशौच) का प्रभाव

शास्त्रों के अनुसार, जब किसी घर में बच्चे का जन्म होता है, तो लगभग 10 से 11 दिन तक सूतक माना जाता है। इस अवधि में पूजा-पाठ और मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं, जिसमें विवाह भी शामिल है। यदि विवाह का मुहूर्त पहले से तय है और इसी बीच बच्चे का जन्म होता है, तो विवाह को रोकने की परंपरा है। हालांकि, यदि विवाह स्थगित करना संभव नहीं है, तो इसे संपन्न किया जा सकता है और बाद में नवग्रह शांति, जन्म शांति और गृहशांति का हवन कराया जाता है। एक विचार यह भी है कि सूतक का प्रभाव केवल उसी घर तक सीमित रहता है। यदि विवाह किसी अन्य स्थान पर हो रहा है, तो वहां इसे किया जा सकता है, लेकिन घर लौटने पर शांति कर्म करना आवश्यक है।

पातक (मृत्यु अशौच) का प्रभाव

मृत्यु अशौच को शास्त्रों में अधिक गंभीर माना गया है। यदि किसी निकट संबंधी की मृत्यु होती है, तो 13 दिन तक अशौच चलता है। यदि विवाह से पहले मृत्यु हो जाए, तो विवाह को स्थगित कर दिया जाता है और तेरहवीं के बाद नया मुहूर्त निकाला जाता है। लेकिन यदि विवाह की रस्में शुरू हो चुकी हैं और बारात द्वार पर है, तो विवाह को रोकना अशुभ माना जाता है। ऐसे में विवाह संपन्न किया जाता है, लेकिन बाद में पितृ शांति, गृहशांति और प्रायश्चित कर्म कराए जाते हैं।

शास्त्रीय आधार

गरुड़ पुराण और गृह्यसूत्रों में कहा गया है कि अशौच काल में किए गए मांगलिक कार्य अधूरे फलदायी होते हैं। यदि विवाह अशौच काल में हो भी जाए, तो दोष निवारण के लिए विशेष पूजा और दान करना आवश्यक है।

क्या करना चाहिए?

  • यदि विवाह से पहले जन्म या मृत्यु हो जाए, तो विवाह को स्थगित करें।
  • यदि विवाह शुरू हो चुका है और रोकना संभव नहीं है, तो रस्में पूरी करें।
  • विवाह के बाद नवग्रह शांति, पितृ शांति, गृहशांति और प्रायश्चित यज्ञ कराएं।
  • दंपत्ति को अशौच की अवधि समाप्त होने के बाद शुद्धिकरण स्नान कराना चाहिए और पुनः शांति पूजा करानी चाहिए।

अन्न, वस्त्र और दक्षिणा का दान कर दोष का निवारण करें.

विवाह के बीच सूतक या पातक लगना अशुभ माना जाता है, लेकिन शास्त्रों में इसका समाधान भी दिया गया है। यदि विवाह को रोका जा सकता है, तो यह सबसे अच्छा है। यदि रोकना संभव नहीं है, तो विवाह के बाद शांति-विधि और प्रायश्चित से दोष का निवारण किया जाता है ताकि वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहे.