रावण के पूर्व जन्म की रहस्यमयी कथा: कैसे मिला असुर योनि?

इस लेख में रावण के पूर्व जन्म की रहस्यमयी कथा का वर्णन किया गया है। जानें कि कैसे रावण को असुर योनि प्राप्त हुई और भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय का क्या संबंध है। यह कहानी पौराणिक मान्यताओं पर आधारित है और इसमें रावण के तीन जन्मों का उल्लेख किया गया है।
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रावण के पूर्व जन्म की रहस्यमयी कथा: कैसे मिला असुर योनि?

रावण के पूर्व जन्म की कहानी

रावण के पूर्व जन्म की रहस्यमयी कथा: कैसे मिला असुर योनि?

रावण के पूर्व जन्म की कथा

रावण के पूर्व जन्म की कहानी: त्रेता युग में प्रभु श्रीराम ने रावण का वध किया था। रावण, जो लंका का सम्राट था, शिव जी का महान भक्त भी माना जाता था। उसने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए उसे त्रिलोक विजेता कहा जाता था। रावण अत्यंत ज्ञानी था, लेकिन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, उसके पिछले जन्म में वह राक्षस नहीं था। आइए जानते हैं कि रावण अपने पूर्व जन्म में कौन था और उसे असुर योनि कैसे प्राप्त हुई।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के दो द्वारपाल थे, जिनका नाम जय और विजय था। वे हमेशा बैकुंठ के द्वार पर खड़े रहते थे। एक बार, जब सनकादि मुनि भगवान विष्णु के दर्शन के लिए आए, तो जय और विजय ने उन्हें रोक लिया। इससे मुनि क्रोधित हो गए और उन्हें राक्षस योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।

तीन जन्मों तक राक्षस योनि का श्राप

तभी भगवान विष्णु वहां आए और मुनि से जय-विजय को क्षमा करने की प्रार्थना की। मुनि ने कहा कि इन दोनों के कारण उन्हें भगवान के दर्शन में तीन क्षण की देरी हुई, इसलिए उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनि में रहना होगा। साथ ही, मुनि ने यह भी कहा कि इनका अंत भगवान विष्णु के हाथों ही होगा।

हर बार श्री हरि के हाथों हुआ अंत

इसके बाद, जय और विजय ने पहले जन्म में हिरण्याक्ष और हिरण्यकश्यपु के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया और नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यपु का अंत किया। फिर, उन्होंने त्रेता युग में रावण और कुंभकरण के रूप में जन्म लिया, जहां भगवान विष्णु ने श्रीराम अवतार में इनका वध किया।

अंत में, द्वापर युग में जय और विजय ने दंत और शिशुपाल के रूप में जन्म लिया। कहा जाता है कि शिशुपाल और दंतवक्र भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के पुत्र थे। इनकी बुराइयों के कारण इनका अंत श्रीकृष्ण ने किया।

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