रमा एकादशी 2025: सूर्य गोचर का विशेष संयोग और पूजा विधि

इस साल रमा एकादशी 17 अक्टूबर को मनाई जाएगी, जिसमें सूर्य देव का राशि परिवर्तन भी हो रहा है। यह दिन विशेष धार्मिक महत्व रखता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु के साथ सूर्य देव की भी पूजा की जाएगी। जानें इस दिन की पूजा विधि और इसके पीछे की मान्यताएं।
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रमा एकादशी 2025: सूर्य गोचर का विशेष संयोग और पूजा विधि

रमा एकादशी और सूर्य गोचर 2025

रमा एकादशी 2025: सूर्य गोचर का विशेष संयोग और पूजा विधि

रमा एकादशी पर सूर्य गोचर

रमा एकादशी और सूर्य गोचर 2025: इस वर्ष कार्तिक मास में रमा एकादशी का दिन धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन एक विशेष संयोग बन रहा है। रमा एकादशी पर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा के साथ-साथ सूर्य देव की भी पूजा की जाएगी। इस दिन व्रत और पूजा से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होगी।

वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 17 अक्टूबर को है। इसी दिन रमा एकादशी का व्रत रखा जाएगा। साथ ही, सूर्य देव भी इस दिन राशि परिवर्तन करेंगे और वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिष के अनुसार, 17 अक्टूबर को दोपहर 1:53 बजे सूर्य का वृश्चिक राशि में प्रवेश होगा।

सूर्य गोचर के दौरान क्या करें? (Surya Gochar 2025)

इस समय सूर्य की शुभ दृष्टि कई राशियों पर पड़ेगी। इसलिए, एक ही दिन सूर्य गोचर और रमा एकादशी का होना बहुत शुभ माना जा रहा है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर सूर्य देव को जल अर्पित करें। आदित्य हृदय सूक्त का पाठ करें और सूर्य तथा मंगल से संबंधित वस्तुओं जैसे गेहूं, लाल वस्त्र, गुड़ आदि का दान करें।

रमा एकादशी व्रत 2025 (Rama Ekadashi 2025)

एक माह में दो एकादशी होती हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है। इस दिन विधिपूर्वक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। मान्यता है कि जो इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करता है, उसके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।

रमा एकादशी पूजा विधि ( Rama Ekadashi Puja Vidhi)

रमा एकादशी के दिन सबसे पहले व्रत का संकल्प लें। फिर अपने पूजा स्थान पर एक चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र रखें। उस पर पवित्र जल छिड़कें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को रोली, चंदन आदि से तिलक करें। पीले फूल, मिठाई और फल का भोग लगाएं। तुलसी दल चढ़ाएं। रमा एकादशी की कथा सुनें और श्री हरि तथा माता लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। अंत में आरती करें। अगले दिन व्रत का पारण शुभ मुहूर्त में करें।