रमजान 2025: इस्लाम में रोजा रखने की परंपरा और महत्व

रमजान का महत्व

मुसलमानों के लिए रमजान का महीना सबसे पवित्र माना जाता है, जो 1 या 2 मार्च से शुरू होने की संभावना है। इस दौरान मुस्लिम समुदाय रोजा रखता है, नमाज अदा करता है और अल्लाह की इबादत करता है।
रोजा रखने का अर्थ है सूरज उगने से लेकर अस्त होने तक कुछ भी न खाना और न पीना। यह अनिवार्य है कि सभी बालिग मुस्लिम महिलाएं और पुरुष रोजा रखें। इस परंपरा की शुरुआत इस्लाम में कब हुई, यह जानना महत्वपूर्ण है।
रमजान का चांद कब दिखेगा?
रमजान का महीना चांद देखने के साथ शुरू होता है। इस वर्ष भारत में रमजान का चांद 28 फरवरी को शाम को दिखाई देने की उम्मीद है, जिसके बाद 1 मार्च को पहला रोजा होगा। यह महीना रहमत और बरकतों से भरा होता है, जिसमें मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं और दान करते हैं।
रोजा रखने की परंपरा की शुरुआत
जमात-ए-इस्लामी हिंद के मौलाना रजियुल इस्लाम नदवी के अनुसार, रोजा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। यह दूसरी हिजरी में शुरू हुआ, जब मुसलमानों को रोजा रखने का आदेश दिया गया। कुरान में भी इस बात का उल्लेख है कि रोजा रखना सभी पर अनिवार्य है।
रोजा का अर्थ
रोजा केवल भूख और प्यास का नाम नहीं है, बल्कि यह आत्म-नियंत्रण और संयम का प्रतीक है। इस दौरान न केवल खाने-पीने से बचना होता है, बल्कि बुरे कामों से भी दूर रहना आवश्यक है।
इस्लाम में रोजे का महत्व
मुफ्ती ओसामा नदवी के अनुसार, रोजा रखना हर मुसलमान पर फर्ज है। कुरान में कई स्थानों पर रोजा रखने की अनिवार्यता का उल्लेख है। रमजान का महीना सब्र और सुकून का समय है, जिसमें अल्लाह की विशेष कृपा होती है।
रोजा न रखने की छूट
मुफ्ती ओसामा नदवी बताते हैं कि बीमार, यात्रा पर जाने वाले, गर्भवती महिलाएं और मासिक धर्म में रहने वाली महिलाओं को रोजा रखने से छूट दी गई है। हालांकि, जो महिलाएं मासिक धर्म के दौरान रोजा नहीं रखतीं, उन्हें बाद में उन रोजों को पूरा करना होता है।