महाभारत: द्रोणाचार्य की मृत्यु और अवतारों का रहस्य

महाभारत का महत्व
महाभारत, एक प्राचीन भारतीय महाकाव्य है, जो धार्मिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे संस्कृत में लिखा गया है और इसका नाम 'महाभारत' इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें भारत के प्राचीन इतिहास के सबसे बड़े युद्ध का वर्णन किया गया है। कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों के बीच हुए युद्ध के दौरान भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिए, उनका भी इसमें उल्लेख है।
द्रोणाचार्य की मृत्यु की कथा
महाभारत में द्रोणाचार्य, जो एक महान गुरु थे, की मृत्यु की कहानी बेहद रोमांचक है। उनकी मृत्यु तब तक संभव नहीं थी जब तक कि वे अपने हथियार नहीं डालते। पांडवों ने एक योजना बनाई ताकि द्रोणाचार्य को अपने हथियार डालने के लिए मजबूर किया जा सके। श्री कृष्ण को पता था कि द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वथामा से बहुत प्रेम करते थे। युद्ध के दौरान भीम ने एक हाथी का वध किया, जिसे युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य को बताया। युधिष्ठिर की सत्यता पर विश्वास करते हुए, द्रोणाचार्य ने अपने शस्त्र त्याग दिए और ध्यान में लीन हो गए, तभी धृष्टद्युम्न ने उन पर हमला कर दिया।
महाभारत में अवतारों का विवरण
भगवान श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है और कहा जाता है कि वे अपने पिछले जन्म में ऋषि मुनि के रूप में थे। बलराम जी, जो कृष्ण के बड़े भाई हैं, को 'बलभद्र' भी कहा जाता है। इंद्र की आज्ञा से आठ वासुओं को शांतनु ने गंगा से प्राप्त किया, जिनमें से सात बह गए और एक वसु, भीम, बचे। द्रोणाचार्य ने देवगुरु वृहस्पति के रूप में जन्म लिया। कर्ण का पालन-पोषण हस्तिनापुर में हुआ, उनके माता-पिता का नाम अधिरथ और राधा था, और उन्हें सूर्य का अंश माना जाता है।