भारत के अद्वितीय मंदिरों में ध्वजा फहराने की अनोखी परंपरा
ध्वजा फहराने की अनोखी परंपरा
भारत, अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और आध्यात्मिकता के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। यहाँ के प्राचीन मंदिर न केवल अद्भुत स्थापत्य कला के उदाहरण हैं, बल्कि वे सदियों पुरानी परंपराओं और रहस्यों को भी समेटे हुए हैं। इन मंदिरों में एक विशेष परंपरा है - 'ध्वजा' (पताका) फहराना, जिसके नियम और विधियाँ सामान्य मंदिरों से भिन्न हैं। आइए, जानते हैं भारत के कुछ प्रमुख प्राचीन मंदिरों के बारे में जहाँ ध्वजा फहराने की परंपराएँ भक्तों के लिए कौतुहल का विषय बनी हुई हैं.
जगन्नाथ पुरी मंदिर, ओडिशा: पवन की दिशा को चुनौती देती ध्वजा
ओडिशा के पुरी में स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर चार धामों में से एक है और अपनी कई अद्भुत परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहाँ की ध्वजा परंपरा सबसे अधिक विस्मयकारी है.
विपरीत दिशा में ध्वजा: यह परंपरा विज्ञान को चुनौती देती है। मंदिर के शिखर पर लगी ध्वजा हमेशा हवा की विपरीत दिशा में फहराती है, जबकि भौतिकी के नियमों के अनुसार, ध्वजा को पवन की दिशा में ही फहराना चाहिए। यह अद्भुत दृश्य भक्तों की आस्था को और मजबूत करता है.
नंगे पांव शिखर पर चढ़ाई: मंदिर के शिखर पर प्रतिदिन एक पुजारी नंगे पांव 45 मीटर (लगभग 150 फीट) ऊँचाई पर चढ़कर ध्वजा बदलता है.
तिरुपति बालाजी मंदिर, आंध्र प्रदेश: गरुड़ ध्वज और उत्सव
गवान के आगमन का प्रतीक: आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर (श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर) को दुनिया के सबसे धनी मंदिरों में गिना जाता है। यहाँ ध्वजा फहराने की परंपरा विशेष रूप से उत्सवों से जुड़ी है.
ध्वजारोहणम: मंदिर के वार्षिक उत्सव 'ब्रह्मोत्सवम' की शुरुआत 'ध्वजारोहणम' से होती है। इस दौरान मंदिर के मुख्य ध्वज स्तंभ पर 'गरुड़ ध्वज' फहराया जाता है.
परंपरा का अर्थ: ऐसा माना जाता है कि गरुड़ ध्वज फहराने से सभी देवताओं को ब्रह्मोत्सवम में भाग लेने के लिए निमंत्रण भेजा जाता है। यह भगवान वेंकटेश्वर के उत्सव में सभी देवी-देवताओं और भक्तों के आगमन का प्रतीक है.
मीनाक्षी अम्मन मंदिर, तमिलनाडु: वार्षिक उत्सव की सूचना
आस्था का विशालतम प्रदर्शन: तमिलनाडु के मदुरै में स्थित मीनाक्षी अम्मन मंदिर अपनी द्रविड़ वास्तुकला और भव्य गोपुरमों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ भी ध्वजारोहण एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है.
चित्तिरै महोत्सव: यह मंदिर अपने 12 दिवसीय वार्षिक 'चित्तिरै महोत्सव' के लिए जाना जाता है, जो अप्रैल के महीने में होता है.
ध्वजारोहण: इस उत्सव का प्रारंभ भी ध्वजारोहण के साथ होता है, जिसे 'कोडिएत्रम' कहा जाता है। यह ध्वजा मंदिर के परिसर में स्थित एक विशाल ध्वज स्तम्भ पर फहराई जाती है। यह रस्म औपचारिक रूप से उत्सव के आरंभ की घोषणा करती है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं.
