भगवान श्रीकृष्ण की 16108 रानियां: बिना गृहस्थ जीवन के कैसे हुईं संतानें?

भगवान श्रीकृष्ण की कथा में उनकी 16108 रानियों और 1.5 लाख पुत्रों का उल्लेख है, जबकि उन्होंने कभी गृहस्थ जीवन नहीं बिताया। जानें कैसे ये रानियां बिना गृहस्थ जीवन के संतानें प्राप्त करने में सफल रहीं। इस लेख में श्रीकृष्ण के विवाहों और उनके अद्भुत जीवन की जानकारी दी गई है।
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भगवान श्रीकृष्ण की 16108 रानियां: बिना गृहस्थ जीवन के कैसे हुईं संतानें?

भगवान श्रीकृष्ण की कथा

भगवान श्रीकृष्ण की 16108 रानियां: बिना गृहस्थ जीवन के कैसे हुईं संतानें?

श्रीकृष्ण की कथाImage Credit source: Freepik

भगवान श्रीकृष्ण की कथा: भगवान श्री हरि विष्णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया और अनेक लीलाएं कीं। उन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीकृष्ण की 16108 रानियां थीं और उनके 1.5 लाख से अधिक पुत्र थे, लेकिन उन्होंने कभी गृहस्थ जीवन नहीं बिताया। आइए जानते हैं कि बिना गृहस्थ जीवन के उनकी रानियों को संतानें कैसे हुईं?

महाभारत के अनुसार, श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह किया। रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं और भगवान से प्रेम करती थीं। रुक्मिणी के अलावा, श्रीकृष्ण की 16107 अन्य रानियां भी थीं। पौराणिक कथाओं में एक दानव भूमासुर का उल्लेख है, जिसने अमरत्व के लिए 16,000 कन्याओं की बलि देने का निर्णय लिया।

16 हजार कन्याओं के साथ विवाह

श्रीकृष्ण ने इन कन्याओं को दानव के बंदीगृह से मुक्त कराया और उन्हें घर भेज दिया। लेकिन जब वे घर पहुंचीं, तो उनके परिवार वालों ने उनके चरित्र पर सवाल उठाए और उन्हें स्वीकार नहीं किया। तब श्रीकृष्ण ने 16,000 रूपों में प्रकट होकर सभी से विवाह किया। इसके अलावा, उन्होंने प्रेम विवाह भी किए।

जब श्रीकृष्ण पांडवों से मिलने इंद्रप्रस्थ पहुंचे, तो एक दिन अर्जुन के साथ वन विहार के लिए गए। उस वन में सूर्य पुत्री कालिन्दी भगवान को पति के रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूरी करते हुए उनसे विवाह किया। श्रीकृष्ण की पत्नियों को पटरानियां कहा जाता है।

भगवान श्रीकृष्ण के 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र

कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण की केवल 8 पत्नियां थीं, जिनमें रुक्मिणी, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा शामिल थीं। पुराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण के 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र थे। उनकी सभी पत्नियों के 10-10 पुत्र और एक-एक पुत्री भी थीं। इस प्रकार उनके कुल 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र और 16,108 कन्याएं थीं।

वरदान से मिली संतानें

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा किए गए 16,000 विवाह सामाजिक दायित्व और दैवीय लीला का हिस्सा माने जाते हैं। ये सभी 16,000 स्त्रियां श्रीकृष्ण के साथ सामान्य गृहस्थ जीवन नहीं जी पाईं, बल्कि द्वारका में स्वतंत्र रूप से रहीं और भजन-कीर्तन करती रहीं। बाद में तपस्या के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया। कहा जाता है कि जब सभी रानियों ने मातृत्व की इच्छा व्यक्त की, तो भगवान ने उन्हें वरदान देकर संतानें प्रदान कीं।

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