भगवान शिव की तीसरी आँख: रहस्य और महत्व

भगवान शिव की तीसरी आँख का रहस्य और महत्व जानें। यह आँख विवेक और बुद्धि का प्रतीक है, जो न केवल प्रलय का संकेत देती है, बल्कि मानवता के कल्याण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे यह तीसरी आँख मनुष्य के ज्ञान और निर्णय क्षमता को प्रभावित करती है।
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भगवान शिव की तीसरी आँख का रहस्य


भगवान शिव, जो कि कल्याणकारी माने जाते हैं, जब भी कोई भक्त सच्चे मन से उन्हें याद करता है, वे तुरंत दर्शन देते हैं। इसी कारण उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है। जबकि यह बात सभी जानते हैं कि उनकी तीसरी आँख प्रलय का संकेत है, बहुत कम लोग इसके वास्तविक अर्थ को समझते हैं। शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव के एक नेत्र में चंद्रमा और दूसरे में सूर्य विद्यमान हैं, जबकि उनकी तीसरी आँख में विवेक समाहित है।


किसी भी रहस्य को भगवान शिव से छुपा नहीं रखा जा सकता, इसलिए उन्हें परब्रह्म भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है समस्त ब्रह्मांड की जानकारी रखने वाला।


शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि भगवान शिव की तीसरी आँख बुद्धि का प्रतीक है। यह आँख हमेशा बंद रहती है, लेकिन जब भगवान शिव का विवेक भंग होता है, तब यह खुल जाती है, जिससे चारों ओर विनाश का माहौल बन जाता है। इसलिए उन्हें त्रिलोचन भी कहा जाता है।


शास्त्रों में यह बताया गया है कि हर व्यक्ति में तीन आँखें होती हैं, जिन्हें कठोर तप और योग साधना के माध्यम से जागृत किया जा सकता है। इसके लिए एक गुरु की आवश्यकता होती है। कहा जाता है कि सप्तऋषियों के अलावा कोई भी इस कार्य को नहीं कर सका है।


सीधे शब्दों में कहें तो तीसरी आँख मनुष्य का विवेक, ज्ञान और बुद्धि है, जिसके द्वारा वह सही और गलत का निर्णय करता है। महादेव की तीसरी आँख में तीनों लोक बसे हुए हैं। यह आँख काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को नियंत्रित करती है और समस्त जगत के कल्याण के लिए कार्य करती है।