भगवान की परिक्रमा: जानें कितनी और कैसे करें?

इस लेख में हम भगवान की परिक्रमा के महत्व और विधियों पर चर्चा करेंगे। जानें कि किस भगवान की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए और इसके पीछे के धार्मिक कारण क्या हैं। विभिन्न देवताओं की परिक्रमा की संख्या और दिशा के बारे में जानकर आप अपनी भक्ति को और भी गहरा बना सकते हैं। यह जानकारी न केवल आपकी आस्था को बढ़ाएगी, बल्कि आपको धार्मिक परंपराओं के प्रति भी जागरूक करेगी।
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भगवान की परिक्रमा: जानें कितनी और कैसे करें?

भगवान की परिक्रमा का महत्व

भगवान की परिक्रमा: जानें कितनी और कैसे करें?

भगवान की परिक्रमा का महत्व

धार्मिक ग्रंथों और प्राचीन परंपराओं में भगवान की परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है. यह न केवल भक्ति और सम्मान का प्रतीक है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी प्रदान करती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर भगवान की परिक्रमा की संख्या और तरीका अलग है?

मंदिर में जाकर परिक्रमा न करना शायद ही संभव है। भक्तजन भगवान की परिक्रमा करके अपनी भक्ति और समर्पण को पूर्ण मानते हैं। लेकिन अक्सर यह सवाल उठता है कि किस भगवान की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए? धर्मशास्त्रों और मंदिर परंपराओं में इसके अलग-अलग विधान मिलते हैं। आइए जानते हैं इस धार्मिक रहस्य को.


परिक्रमा का महत्व और दिशा

परिक्रमा का महत्व और दिशा

परिक्रमा को संस्कृत में प्रदक्षिणा कहा जाता है, जिसका अर्थ है भगवान को दाईं ओर रखते हुए चारों ओर घूमना। इसे सूर्य की गति का प्रतीक माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि परिक्रमा से भक्त के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और जीवन में संतुलन आता है.


शिवलिंग की परिक्रमा: अधूरी क्यों?

शिवलिंग की परिक्रमा: क्यों होती है अधूरी?

शिवजी की परिक्रमा अन्य देवताओं से भिन्न मानी जाती है। परंपरा के अनुसार, शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती। भक्त केवल आधा चक्कर लगाते हैं, जिसे अर्ध-प्रदक्षिणा कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिवलिंग के पीछे माता पार्वती का स्थान होता है, जिसकी परिक्रमा नहीं की जाती। यही कारण है कि शिवलिंग की आधी परिक्रमा करना नियम है।


विष्णु और उनके अवतार

विष्णु और उनके अवतार

विष्णु भगवान और उनके अवतारों जैसे श्रीराम और श्रीकृष्ण की परिक्रमा पूरी की जाती है। सामान्य परंपरा के अनुसार, भक्त तीन या चार बार परिक्रमा करते हैं। खास अवसरों पर यह संख्या विषम रखी जाती है, जैसे 5 या 7, ताकि पूजा का प्रभाव और अधिक फलदायी हो.


माता की परिक्रमा: विषम संख्याओं का महत्व

माता की परिक्रमा: विषम संख्याओं का राज

दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जैसी देवियों की परिक्रमा में विषम संख्याओं का महत्व है। रोज़मर्रा की पूजा में तीन परिक्रमा पर्याप्त मानी जाती है। वहीं नवरात्र जैसे विशेष अवसरों पर भक्तजन सात बार तक परिक्रमा करते हैं। यह संख्या शक्ति और भक्ति दोनों का प्रतीक मानी जाती है.


गणेश और हनुमान जी की परिक्रमा

गणेश और हनुमान जी

गणेश जी, जिन्हें विघ्नहर्ता कहा जाता है, की परिक्रमा आमतौर पर एक से तीन बार की जाती है। गणपति पूजन की शुरुआत पर यही नियम लागू होता है। हनुमान जी की परिक्रमा संकटमोचन का रूप मानी जाती है। भक्त सामान्य समय में एक परिक्रमा करते हैं, लेकिन संकट निवारण या विशेष संकल्पों के समय तीन से ग्यारह परिक्रमा करने की परंपरा है.


परिक्रमा का असली महत्व

हर देवता की परिक्रमा की संख्या शास्त्रों, आगमों और स्थानीय मंदिर परंपराओं पर निर्भर करती है। कोई एक तय नियम पूरे भारत में लागू नहीं है। लेकिन एक बात सबमें समान है: परिक्रमा हमेशा दाईं ओर (clockwise) ही की जाती है। संख्या चाहे जितनी भी हो, असली महत्व भक्त के भाव और श्रद्धा का है। आस्था ही है जो परिक्रमा को पूर्णता और भगवान को प्रसन्न करती है.