बाबा बागेश्वर की सनातन एकता पदयात्रा: जीरखोद मंदिर का महत्व और इतिहास
बाबा बागेश्वर की सनातन एकता पदयात्रा
बाबा बागेश्वर की’ सनातन एकता पदयात्रा
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, जो बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर हैं, ने सनातन धर्म के प्रचार और हिंदू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से एक भव्य पदयात्रा की शुरुआत की है। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य हिंदू राष्ट्र की स्थापना, जातिवाद का उन्मूलन और समाज में एकता लाना है। यह पदयात्रा दिल्ली के प्रसिद्ध छतरपुर मंदिर से आरंभ होकर, आज 7 नवंबर को, दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के एक प्राचीन धार्मिक स्थल, जीरखोद मंदिर में अपना पहला रात्रि विश्राम करेगी। आइए, इस अवसर पर हम जीरखोद मंदिर के इतिहास और धार्मिक महत्व को समझते हैं, जो बाबा बागेश्वर की यात्रा का पहला पड़ाव बन रहा है.
जीरखोद मंदिर का इतिहास और पौराणिक महत्व
जीरखोद मंदिर, जो न केवल दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र बल्कि पूरे उत्तर भारत के भक्तों के लिए एक पूजनीय स्थल है, मुगल शासन के समय का माना जाता है। इसका इतिहास पौराणिक किंवदंतियों से जुड़ा हुआ है। मंदिर के बाहर राधा और कृष्ण की एक विशाल मूर्ति स्थापित है, और अंदर भगवान शिव और हनुमान जी की मूर्तियां भी हैं। मंदिर की मूल संरचना प्राचीन है, जिसके कारण समय-समय पर इसका जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण होता रहा है। यहां स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियां भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं.
मनोकामना सिद्धि का केंद्र
भक्तों की मान्यता है कि जीरखोद मंदिर में मांगी गई मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। विशेषकर शनिवार और मंगलवार को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर कई पीढ़ियों से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है.
धार्मिक और सामाजिक महत्व
जीरखोद मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का केंद्र भी है। यहां हर वर्ष विशेष भंडारे, कथा-कीर्तन और सेवा कार्य आयोजित होते हैं। बाबा बागेश्वर की पदयात्रा के आगमन से श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह है। मंदिर समिति के अनुसार, रात्रि विश्राम के दौरान भजन-संकीर्तन, आरती और सत्संग का आयोजन होगा, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेंगे.
बाबा बागेश्वर की पदयात्रा और जीरखोद धाम
धीरेंद्र शास्त्री की सनातन हिंदू एकता पदयात्रा का पहला पड़ाव जीरखोद मंदिर में होना इस प्राचीन धाम के महत्व को और बढ़ा देगा। यह यात्रा आधुनिक और प्राचीन आस्था के मिलन का प्रतीक बन रही है, जहां नई पीढ़ी के संत धीरेंद्र शास्त्री सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने का संकल्प लेकर निकले हैं, वहीं जीरखोद जैसे प्राचीन मंदिर उन्हें प्रेरणा प्रदान कर रहे हैं.
