नांदी श्राद्ध: पितरों का आशीर्वाद लेने की परंपरा

नांदी श्राद्ध की परिभाषा

नांदी श्राद्ध की अवधारणा क्या है?
पितृ तर्पण के विभिन्न प्रकार: हिंदू धर्म में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले पितरों का स्मरण और आशीर्वाद लेना आवश्यक होता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण क्रिया नांदी श्राद्ध है, जिसे कई लोग पूरी तरह से नहीं समझ पाते। आइए जानते हैं कि यह क्या है, कब किया जाता है और इसकी परंपरा का क्या महत्व है।
नांदी श्राद्ध की प्रक्रिया
नांदी का अर्थ है शुभारंभ और मंगल। नांदी श्राद्ध का तात्पर्य है कि किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत से पहले पितरों को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना। गरुड़ पुराण और धर्मशास्त्रों के अनुसार, जब घर में विवाह, उपनयन (जनेऊ संस्कार), गृहप्रवेश या अन्य कोई बड़ा शुभ कार्य होने वाला होता है, तो उससे पहले नांदी श्राद्ध किया जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि पितरों की आत्माएं प्रसन्न होकर उस कार्य को सफल और मंगलमय करें।
नांदी श्राद्ध कब किया जाता है?
विवाह से पहले- शादी से पहले वर और वधू पक्ष नांदी श्राद्ध करते हैं ताकि पितृदोष न रहे और वैवाहिक जीवन सुखी रहे।
उपनयन संस्कार से पहले- जनेऊ धारण करने वाले बालक को पितरों का आशीर्वाद मिले, इसके लिए नांदी श्राद्ध अनिवार्य माना गया है।
गृहप्रवेश या बड़े यज्ञ से पूर्व- शास्त्र कहते हैं कि घर में प्रवेश करने या किसी वैदिक यज्ञ-हवन से पूर्व नांदी श्राद्ध करने से वह अनुष्ठान पूर्ण फल देता है।
नांदी श्राद्ध का महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि पितर अदृश्य रूप से हमारे साथ रहते हैं। जब हम किसी मांगलिक कार्य की शुरुआत करते हैं, तो उनके आशीर्वाद के बिना वह अधूरा माना जाता है। नांदी श्राद्ध द्वारा पितरों को जल और अन्न का तर्पण कर उनकी आत्मा को संतुष्ट किया जाता है। संतुष्ट पितर अपनी संतान को आशीर्वाद देकर कार्य में सफलता, समृद्धि और दीर्घायु प्रदान करते हैं।
नांदी श्राद्ध की विधि
पंडित या ब्राह्मण को आमंत्रित कर विधिवत पूजा की जाती है। कुश, तिल, जल और पिंड द्वारा पितरों का आह्वान कर उन्हें तर्पण अर्पित किया जाता है। भोजन और दान-दक्षिणा के माध्यम से ब्राह्मणों को संतुष्ट किया जाता है। अंत में संकल्प लिया जाता है कि आने वाला कार्य पितरों के आशीर्वाद से पूर्ण हो।
शास्त्रीय आधार
गरुड़ पुराण और मनुस्मृति में वर्णित है कि नांदी श्राद्ध से पितर संतुष्ट होकर वंशजों को सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं। अश्वलायन गृह्यसूत्र और आपस्तंब धर्मसूत्र में भी विवाह, उपनयन और गृहप्रवेश से पहले नांदी श्राद्ध का विधान बताया गया है। नांदी श्राद्ध एक मंगलप्रद और अनिवार्य संस्कार है जो हमें यह सिखाता है कि जीवन के किसी भी बड़े कार्य में पूर्वजों का आशीर्वाद लेना उतना ही आवश्यक है जितना देवताओं की पूजा करना।