गोवर्धन परिक्रमा: जानें कब, कैसे और इसके लाभ

गोवर्धन परिक्रमा एक पवित्र यात्रा है जो मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत के चारों ओर की जाती है। यह यात्रा लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है और भक्तों के लिए विशेष धार्मिक महत्व रखती है। इस लेख में गोवर्धन परिक्रमा के नियम, लाभ और इसे कैसे करना है, की विस्तृत जानकारी दी गई है। जानें कब इस यात्रा को करना शुभ माना जाता है और किन मंदिरों का दर्शन करना आवश्यक है।
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गोवर्धन परिक्रमा: जानें कब, कैसे और इसके लाभ

गोवर्धन परिक्रमा

गोवर्धन परिक्रमा: जानें कब, कैसे और इसके लाभ

गोवर्धन परिक्रमा

गोवर्धन परिक्रमा के नियम: उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित गोवर्धन पर्वत हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसे गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा के दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का निर्माण कर उसकी पूजा करते हैं। कुछ भक्त इस दिन पर्वत की परिक्रमा भी करते हैं। मथुरा और वृंदावन के निवासियों के लिए यह पर्वत विशेष पुण्यदायी माना जाता है। यदि आप गोवर्धन परिक्रमा करने की योजना बना रहे हैं, तो इस लेख में आपको सभी आवश्यक जानकारी मिलेगी।

गोवर्धन परिक्रमा क्या है?

गोवर्धन परिक्रमा एक पवित्र यात्रा है, जो लगभग 21 किलोमीटर लंबी होती है। इस यात्रा में भक्त गोवर्धन पर्वत के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। इसे दो भागों में बांटा गया है: बड़ी परिक्रमा (लगभग 12 किलोमीटर) और छोटी परिक्रमा (लगभग 10 किलोमीटर)। इस यात्रा के दौरान कई मंदिर भी आते हैं। गोवर्धन परिक्रमा के लिए कोई शुल्क नहीं है, लेकिन यदि आप ई-रिक्शा का उपयोग करते हैं, तो उसका शुल्क देना होगा।

गोवर्धन परिक्रमा के प्रकार

बड़ी परिक्रमा: यह लगभग 12 किलोमीटर (सात कोस) की होती है और इसे पूरा करने में लगभग 3 से 4 घंटे लगते हैं।

छोटी परिक्रमा: यह लगभग 10 किलोमीटर (तीन कोस) की होती है, जो गोवर्धन के अंदर से होकर मानसी गंगा पर समाप्त होती है।

गोवर्धन परिक्रमा कब करनी चाहिए?

गोवर्धन परिक्रमा मुख्य रूप से गोवर्धन पूजा और मुड़िया पूर्णिमा पर की जाती है, जो कार्तिक मास में होती है। इसके अलावा, अक्टूबर से मार्च तक का मौसम इस यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, अमावस्या और पूर्णिमा की रातें भी गोवर्धन परिक्रमा के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती हैं।

गोवर्धन परिक्रमा में कितना समय लगता है?

गोवर्धन परिक्रमा में लगने वाला समय आपकी चलने की गति और आराम पर निर्भर करता है, जो आमतौर पर 5 से 7 घंटे लगता है। यदि आप ई-रिक्शा या कार का उपयोग करते हैं, तो यह समय 1 से 2 घंटे कम हो सकता है।

गोवर्धन परिक्रमा कहां से शुरू होती है?

गोवर्धन परिक्रमा का मुख्य प्रारंभिक बिंदु दान घाटी मंदिर है। हालांकि, कुछ भक्त अपनी सुविधा के अनुसार मानसी-गंगा कुंड या अन्य स्थानों से भी परिक्रमा शुरू कर सकते हैं।

गोवर्धन परिक्रमा के लाभ

गोवर्धन परिक्रमा करने से कई लाभ होते हैं, जैसे सभी मनोकामनाओं का पूरा होना, पापों से मुक्ति और दैवीय आशीर्वाद प्राप्त करना। धार्मिक मान्यता है कि इस परिक्रमा से भगवान कृष्ण की कृपा बनी रहती है, सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं, व्यापार में उन्नति होती है और धन की कमी नहीं होती।

गोवर्धन परिक्रमा के नियम

गोवर्धन परिक्रमा के नियमों के अनुसार, इसे नंगे पैर, जूते-चप्पल पहनकर और मन को शांत रखकर करना चाहिए। परिक्रमा गोवर्धन पर्वत को दाईं ओर रखकर शुरू और समाप्त करनी चाहिए। इसे बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।

गोवर्धन परिक्रमा करते समय कौन सा मंत्र बोलना चाहिए?

गोवर्धन परिक्रमा करते समय "गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक, विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।" मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र का जाप करते हुए गोवर्धन परिक्रमा का पूर्ण फल मिलता है।

गोवर्धन परिक्रमा कैसे शुरू करें?

  • गोवर्धन परिक्रमा करने के लिए मानसी गंगा या दान घाटी में स्नान करें या हाथ-मुंह धो लें।
  • फिर परिक्रमा शुरू करने से पहले गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें।
  • दान घाटी से परिक्रमा शुरू करें और अंत में उसी स्थान पर समाप्त करें।
  • जूते-चप्पल पहनकर गोवर्धन परिक्रमा न करें और न ही इसे बीच में अधूरा छोड़ें।
  • परिक्रमा के दौरान भगवान कृष्ण का स्मरण करें और सांसारिक बातों से बचें।
  • रास्ते में पड़ने वाले प्रमुख मंदिरों और स्थलों के दर्शन करें।
  • जिस स्थान से परिक्रमा शुरू की है, वहीं पर परिक्रमा समाप्त करें।
  • आप दंडवत परिक्रमा भी कर सकते हैं, इस परिक्रमा में 7 दिन लग सकते हैं।

गोवर्धन की परिक्रमा में कौन-कौन से मंदिर आते हैं?

गोवर्धन परिक्रमा में दानघाटी मंदिर (शुरुआत), पूंछरी का लौठा, जतीपुरा मुखारविंद मंदिर, मानसी गंगा, राधा कुंड, श्याम कुंड और कुसुम सरोवर जैसे प्रमुख मंदिर और स्थल आते हैं। ये सभी स्थान गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के दौरान महत्वपूर्ण पड़ाव होते हैं, जिनका विशेष धार्मिक महत्व है।

दान घाटी मंदिर: यह परिक्रमा का प्रारंभिक और अंतिम बिंदु है। इसे कृष्ण द्वारा गोपियों से दान मांगने की लीला का स्थान माना जाता है।

पूंछरी का लौठा: यह श्री हनुमान जी का मंदिर है और इसे परिक्रमा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है।

जतीपुरा मुखारविंद मंदिर: यहां गोवर्धन पर्वत के मुखारविंद के दर्शन होते हैं, जो भगवान कृष्ण का अवतार माने जाते हैं।

मानसी गंगा: यहां गिरिराज जी के मुखारविंद का पूजन होता है। आषाढ़ पूर्णिमा और कार्तिक अमावस्या पर यहां मेला लगता है।

राधा कुंड और श्याम कुंड: राधा रानी द्वारा अपनी कंगन से खोदे गए कुंड हैं, जिनमें स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है।

कुसुम सरोवर: यह एक ऐतिहासिक कुंड है जहां राधा रानी फूल लाती थीं और इसमें नारद कुंड भी है।

गोवर्धन पर्वत परिक्रमा के क्या नियम हैं?

  • यात्रा शुरू करने से पहले गोवर्धन पर्वत को प्रणाम करें और जहां से परिक्रमा शुरू करें, वहीं समाप्त करें।
  • गोवर्धन परिक्रमा के दौरान किसी भी प्राणी, कुंड या वृक्ष का अपमान न करें।
  • परिक्रमा नंगे पैर करनी चाहिए, परिक्रमा के दौरान जूते-चप्पल नहीं पहनने से बचें।
  • परिक्रमा करते समय गोवर्धन पर्वत को हमेशा दाईं ओर रखना चाहिए।
  • परिक्रमा में सांसारिक बातों से बचें और केवल भगवान कृष्ण के चरणों में मन लगाएं।
  • परिक्रमा के दौरान अश्लील या गलत विचार मन में न लाएं।
  • परिक्रमा के दौरान बीड़ी-सिगरेट या तंबाकू जैसी चीजों का सेवन न करें।
  • गोवर्धन पर्वत के ऊपर न चढ़ें, क्योंकि यह भगवान कृष्ण का ही एक अभिन्न रूप है।
  • परिक्रमा के मार्ग में किसी भी कुंड या तालाब में पैर न धोएं, क्योंकि वे पवित्र हैं।
  • कुंडों में स्नान और आचमन कर सकते हैं। लेकिन साबुन, तेल या कपड़े धोने जैसे कार्य न करें।
  • गोवर्धन पर्वत की ओर पीठ करके या पैर फैलाकर न तो बैठें और न ही लेटें।
  • गोवर्धन परिक्रमा को बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।
  • अगर आप चल नहीं सकते, तो ई-रिक्शा से परिक्रमा कर सकते हैं। लेकिन जहां तक संभव हो, वाहन इस्तेमाल न करें।
  • परिक्रमा शुरू करने से पहले मानसी गंगा में स्नान करना शुभ माना जाता है।
  • परिक्रमा के प्रारंभ और समापन पर भजन, पूजन और दान करें।