गुरु नानक देव की मक्का यात्रा: एकता और समानता का संदेश

गुरु नानक देव का जीवन और उपदेश
गुरु नानक देव, जो सिख धर्म के संस्थापक और महान संत माने जाते हैं, ने अपने उपदेशों के माध्यम से मानवता, समानता और ईश्वर की एकता का संदेश फैलाया। उनके जीवन की कई घटनाएं आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण घटना उनकी मक्का यात्रा है, जो यह दर्शाती है कि ईश्वर किसी एक स्थान या दिशा तक सीमित नहीं हैं।
मक्का यात्रा का विवरण
गुरु नानक देव अपने शिष्य भाई मरदाना के साथ मक्का पहुंचे। यात्रा के दौरान वे अत्यंत थक गए थे और आराम करने के लिए लेट गए। संयोगवश, उनके पैर मक्का की दिशा में थे।
गुरु नानक और जियोन का संवाद
वहां उपस्थित जियोन नामक व्यक्ति, जो हाजियों की सेवा कर रहा था, ने यह देखकर नाराजगी जताई और कहा—
“क्या तुम्हें पता नहीं कि मक्का की ओर पैर करके लेटना गलत है?”
गुरु नानक ने शांत स्वर में उत्तर दिया—
“मैं थका हुआ हूं, मेरे पैर उस दिशा में कर दो जहां खुदा न हो।”
जियोन ने जैसे ही उनके पैर दूसरी दिशा में घुमाए, उसे यह एहसास हुआ कि हर दिशा में मक्का है — अर्थात् ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं।
गुरु नानक का महत्वपूर्ण संदेश
इस घटना से गुरु नानक जी ने यह महत्वपूर्ण शिक्षा दी—
- ईश्वर सर्वव्यापक है — वह किसी एक स्थान, दिशा या रूप में सीमित नहीं है।
- अच्छे कर्म का महत्व — ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग सज्जनता, परोपकार और सत्य के आचरण से है।
- समानता का सिद्धांत — सभी धर्म, जाति व परंपराओं के लोगों को समान दृष्टि से देखना चाहिए।
प्रकाश पर्व और गुरु नानक के उपदेश
गुरु नानक जयंती, जिसे प्रकाश पर्व कहा जाता है, उनके उपदेशों को याद करने और जीवन में उतारने का अवसर है। उनके मूल विचार—
- “इक ओंकार सतनाम” — ईश्वर एक है और वही सत्य है।
- सभी धर्मों के प्रति सम्मान और समानता।
- प्रेम, एकजुटता और सच्चाई का मार्ग अपनाना।
गुरु नानक देव की मक्का यात्रा की यह कथा हमें याद दिलाती है कि ईश्वर हर हृदय और हर दिशा में विद्यमान है, बस जरूरत है उसे अच्छे कर्मों और सच्चे मन से देखने की।