गणेशजी से जुड़ी रोचक कथाएँ और परंपराएँ

दूर्वा चढ़ाने की परंपरा
प्राचीन कथा के अनुसार, राक्षस अनलासुर ने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था। देवताओं और ऋषियों ने महादेव से मदद मांगी। शिवजी ने बताया कि केवल गणेशजी इस असुर का अंत कर सकते हैं। जब गणेशजी ने अनलासुर से युद्ध किया, तो उन्होंने उसे निगल लिया, जिससे उनके पेट में जलन होने लगी। कश्यप ऋषि ने उन्हें दूर्वा की 21 गांठें दीं, जिससे उनकी जलन शांत हुई। इस घटना के बाद से गणेशजी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
गणेशजी का वाहन मूषक
एक बार एक असुर मूषक के रूप में पाराशर ऋषि के आश्रम में घुस गया और सब कुछ कुतर डाला। ऋषियों ने गणेशजी से मदद मांगी। गणेशजी ने मूषक को पकड़कर उसे अपना वाहन बना लिया। जब गणेशजी मूषक पर बैठे, तो वह दबने लगा और विनती करने लगा कि बप्पा अपना वजन उसके अनुसार कर लें। गणेशजी ने उसकी बात मान ली और तब से मूषक उनका वाहन बन गया।
तुलसी का वर्जित होना
एक बार तुलसी ने गणेशजी से विवाह की इच्छा व्यक्त की, लेकिन गणेशजी ने मना कर दिया। इससे नाराज होकर तुलसी ने उन्हें श्राप दिया कि उनके दो विवाह होंगे। गणेशजी ने भी तुलसी को श्राप दिया कि उसका विवाह एक असुर से होगा, हालाँकि वह भगवान विष्णु को प्रिय रहेगी। इसी कारण गणेशजी की पूजा में तुलसी का उपयोग वर्जित है।
गणेशजी का एक दांत टूटना
भगवान परशुराम एक बार कैलाश पर्वत पर शिवजी से मिलने आए, लेकिन उस समय शिवजी विश्राम कर रहे थे। गणेशजी ने उन्हें रोका, जिससे परशुराम क्रोधित हो गए और अपने फरसे से उन पर वार किया। चूंकि यह फरसा स्वयं शिवजी द्वारा दिया गया था, गणेशजी ने इसका प्रतिकार नहीं किया और वार अपने दांत पर ले लिया, जिससे उनका एक दांत टूट गया और वे 'एकदंत' कहलाए।
गणेशजी को मोदक का प्रेम
माता अनसूया ने एक बार गणेशजी को भोजन के लिए आमंत्रित किया। गणेशजी खाते रहे, लेकिन संतुष्ट नहीं हुए। तब माता अनसूया ने उन्हें मोदक दिया। इसे खाते ही वे संतुष्ट हो गए। तभी से गणेशजी को मोदक का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई।