खाटू श्याम की अद्भुत कहानी: बर्बरीक का बलिदान

इस लेख में हम खाटू श्याम की अद्भुत कहानी और बर्बरीक के बलिदान के बारे में जानेंगे। महाभारत के युद्ध में बर्बरीक की भूमिका और भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके संबंधों को समझेंगे। यह कहानी न केवल ऐतिहासिक है, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। जानें कि कैसे बर्बरीक ने अपने बलिदान से एक नई पहचान बनाई और कैसे वह ‘हारे का सहारा’ बने।
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खाटू श्याम की अद्भुत कहानी: बर्बरीक का बलिदान

खाटू श्याम की कहानी

खाटू श्याम की अद्भुत कहानी: बर्बरीक का बलिदान

महाभारत के युद्ध में कई रोचक और अनसुने किस्से हैं, जिनमें से एक है बर्बरीक की कहानी। जब कुरुक्षेत्र में युद्ध की घोषणा हुई, तो अनेक योद्धा वहां पहुंचे। इनमें एक ऐसा वीर योद्धा था, जो केवल तीन बाणों से अपने दुश्मनों को समाप्त कर सकता था। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसा नहीं होने दिया। महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला, जिसमें लाखों लोग मारे गए और कौरव वंश का पूर्ण नाश हो गया। आइए जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को अपनी शक्ति दिखाने का अवसर क्यों नहीं दिया।

बर्बरीक, जो भीम का पोता और घटोत्कच का पुत्र था, बचपन से ही एक महान योद्धा था। उसने भगवान शिव की कृपा से तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे। जब युद्ध का समय आया, तो बर्बरीक ने अपनी मां से आशीर्वाद लेकर युद्धक्षेत्र में जाने का निर्णय लिया। उसने अपनी मां से वचन दिया कि वह हमेशा हारे हुए पक्ष का साथ देगा।

जब बर्बरीक ने देखा कि पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण हैं, तो यह स्पष्ट था कि कौरव कमजोर पड़ जाएंगे। इसलिए, बर्बरीक का कौरवों का साथ देना अधर्म होता। भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी परीक्षा ली और उसका सिर मांग लिया। बर्बरीक ने मुस्कुराते हुए अपना सिर काटकर भगवान श्रीकृष्ण को दे दिया।

बर्बरीक के इस महान बलिदान से भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे कलियुग में पूजा जाने का वरदान दिया। श्रीकृष्ण ने कहा कि वह ‘श्याम’ नाम से पूजे जाएंगे और ‘हारे का सहारा’ कहलाएंगे। तभी से खाटू श्याम को हारे का सहारा माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है.