करवा चौथ: महिलाओं का व्रत और उसकी पौराणिक कथा

करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं। यह व्रत उनके लिए विशेष महत्व रखता है और वे साल भर इसकी प्रतीक्षा करती हैं। महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। व्रत का आरंभ सूर्योदय से होता है और यह चाँद निकलने तक जारी रहता है। महिलाएं छननी के माध्यम से चाँद का दर्शन करती हैं और अपने पति का चेहरा भी उसी से देखती हैं। इसके बाद वे अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत समाप्त करती हैं।
महिलाएं छननी से पति का चेहरा क्यों देखती हैं?

इस परंपरा के पीछे एक प्राचीन कथा है। वीरवती नाम की एक महिला थी, जिसके सात भाई थे। वे अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। एक वर्ष, जब करवा चौथ आया, वीरवती अपने मायके में थी। उसने अपने पति के लिए विधिपूर्वक व्रत रखा। निर्जला व्रत के कारण उसकी तबीयत बिगड़ने लगी, जिससे उसके भाई चिंतित हो गए। उन्होंने एक योजना बनाई और एक पेड़ की शाखा पर छननी के पीछे जलता हुआ दीपक रख दिया। उन्होंने वीरवती को बताया कि चाँद निकल आया है, जिससे वह अपना व्रत खोल सकती है।
करवा चौथ माता की कृपा

जब वीरवती ने पहला टुकड़ा खाया, तो उसे छींक आ गई। दूसरे टुकड़े में उसे बाल आ गया और तीसरे टुकड़े पर उसे अपने पति की मृत्यु की खबर मिली। बाद में उसे झूठे चाँद की सच्चाई का पता चला। उसने पूरे साल चतुर्थी पर निर्जला व्रत रखा और करवा चौथ पर विधिपूर्वक पूजा की। चाँद को अर्घ्य देने के बाद उसने अपने पति की पुनर्जीवित होने की प्रार्थना की। इस दौरान उसने पहले चाँद को और फिर अपने पति का चेहरा देखा। करवा चौथ माता ने उसकी मनोकामना पूरी की और उसका पति पुनः जीवित हो गया। इसीलिए महिलाएं छननी से चाँद और पति का चेहरा देखती हैं ताकि कोई भी उन्हें वीरवती की तरह धोखा न दे सके।