उत्पन्ना एकादशी 2025: महत्व और पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
उत्पन्ना एकादशी वह विशेष दिन है जब माता एकादशी का जन्म भगवान श्रीहरि विष्णु के शरीर से हुआ था। इस दिन भगवान ने 'मुर' नामक राक्षस का वध किया था, जिससे यह एकादशी अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसे मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता एकादशी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है।
उत्पन्ना एकादशी का व्रत
इस दिन व्रत रखने की परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से जीवन में सुख और समृद्धि का वास होता है। पूजा के दौरान संतान गोपाल स्तोत्र का पाठ करना भी आवश्यक माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से संतान प्राप्ति और उनके जीवन में खुशहाली बनी रहती है।
उत्पन्ना एकादशी की तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 15 नवंबर को रात 12:49 बजे से शुरू होगी और 16 नवंबर को रात 2:37 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
संतान गोपाल स्तोत्रम्
श्रीशं कमलपत्राक्षं देवकीनन्दनं हरिम् ।
सुतसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि मधुसूदनम् ॥1॥
नमाम्यहं वासुदेवं सुतसम्प्राप्तये हरिम् ।
यशोदांकगतं बालं गोपालं नन्दनन्दनम् ॥
अस्माकं पुत्रलाभाय गोविन्दं मुनिवन्दितम् ।
नमाम्यहं वासुदेवं देवकीनन्दनं सदा ॥
गोपालं डिम्भकं वन्दे कमलापतिमच्युतम् ।
पुत्रसम्प्राप्तये कृष्णं नमामि यदुपुंगवम् ॥
पुत्रकामेष्टिफलदं कंजाक्षं कमलापतिम् ।
देवकीनन्दनं वन्दे सुतसम्प्राप्तये मम ॥
