कुंडली में अकाल मृत्यु के संकेत और बचाव के उपाय
कुंडली और अकाल मृत्यु का महत्व
ज्योतिष शास्त्र का व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसमें कुंडली का विवरण मिलता है, जो किसी व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य के बारे में जानकारी प्रदान करता है। कुंडली के माध्यम से मृत्यु के संभावित कारणों का भी अनुमान लगाया जा सकता है। ग्रहों की विशेष स्थितियों के कारण व्यक्ति को जीवन में सुख या दुख का अनुभव होता है। यदि ग्रहों की स्थिति अनुकूल नहीं है, तो व्यक्ति को कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
कौन सी ग्रह स्थितियां अकाल मृत्यु का कारण बन सकती हैं
कुंडली में राहु और केतु का पहले, सातवें, आठवें या बारहवें भाव में होना अकाल मृत्यु का संकेत देता है। यदि इनमें से कोई ग्रह मारकेश से सातवें भाव में है, तो भी अकाल मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।
शनि, चंद्रमा और मंगल का लगातार चौथे, सातवें और दसवें भाव में होना व्यक्ति को ऊंचाई से गिरने या खाई में गिरने का खतरा बढ़ा सकता है।
आठवें और बारहवें भाव के स्वामी की महादशा में अकाल मृत्यु की संभावना होती है, लेकिन अन्य पहलुओं का भी ध्यान रखना आवश्यक है।
यदि कुंडली के आठवें भाव में शनि है, तो यह भी अकाल मृत्यु का कारण बन सकता है, लेकिन यदि शनि शुभ है, तो व्यक्ति की आयु लंबी हो सकती है।
राहु और मंगल की युति या समसप्तक योग भी अकाल मृत्यु का संकेत दे सकता है।
यदि लग्न में मिथुन, तुला या धनु राशि है और सूर्य या चंद्रमा वहां स्थित हैं, तो ऐसे व्यक्ति को पानी में गिरने का खतरा हो सकता है।
अकाल मृत्यु से बचने के उपाय
महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप करें, जिससे आयु बढ़ती है और जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
शनि, मंगल, राहु और केतु के लिए उपाय करें, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने से भी अकाल मृत्यु का भय कम होता है।
