जांच में 6 अधिकारियों के नाम आए सामने, शासन को भेजे

जांच में 6 अधिकारियों के नाम आए सामने, शासन को भेजे
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जांच में 6 अधिकारियों के नाम आए सामने, शासन को भेजे

प्राथमिक जांच के मुताबिक सुपरटेक मामले में यही अधिकारी तैनात रहे हैं। अब इनकी प्राधिकरण की ओर से विभागीय जांच होगी या फिर शासन की ओर से एसआईटी की जांच में इन्हें शामिल किया जाएगा। यह सब कुछ शासन के अगले निर्देशों के बाद में पता चलेगा। सुपरटेक के एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट मामले में मुख्यमंत्री के आदेश के बाद प्राधिकरण ने रातों-रात फाइलें खुलवाकर जांच कराई। इसमें छह तत्कालीन अधिकारियों के नाम सामने आए। बृहस्पतिवार को सूची शासन को भेज दी गई है। 

यह अधिकारी एमराल्ड कोर्ट के मामले में किए गए फैसले के दौरान प्राधिकरण में तैनात थे। बताया जा रहा है कि इनकी तैनाती के दौरान ही सुपरटेक को फायदा पहुंचाया गया। सूत्रों के मुताबिक, चार अधिकारी नियोजन विभाग से संबंधित हैं। जबकि इंजीनियरिंग और एक राजपत्रित अधिकारी प्रशासन के स्तर से है। संभावना है कि सूची में प्रशासनिक स्तर के चीफ आर्किटेक्ट या एसीईओ स्तर के अधिकारियों के नाम हैं। हालांकि, यह सूची कोर्ट की ओर से उठाए गए बिंदुओं के आधार पर निकाली गई है। प्राधिकरण के अधिकारियों के मुताबिक , मुख्यमंत्री की ओर से सुपरटेक मामले के दौरान तैनात रहे संबंधित अधिकारियों के जल्द से जल्द नाम मांगे गए थे।  इसमें यह देखा गया है कि जिन बिंदुओं पर कोर्ट ने सवाल उठाए हैं और सुपरटेक को फायदा पहुंचाया गया है, उन फाइलों की मंजूरी के दौरान प्राधिकरण की सीट पर कौन सा अधिकारी मौजूद था। इसमें यह भी देखा गया है कि हस्ताक्षर किस-किस अधिकारी ने किए हैं।

 प्राधिकरण ने मुकेश गोयल को कोर्ट से संबंधित मामले को देखने के लिए नामित किया था, लेकिन उन्होंने कोर्ट के मसले को प्राधिकरण को नहीं बताया। उसी दिन कोर्ट ने प्राधिकरण पर तल्ख टिप्पणी की थी। प्राधिकरण की ओर से चिह्नित नामों में से एक नाम मुकेश गोयल का भी है। मुकेश गोयल पर नोएडा प्राधिकरण ने चार्जशीट की थी और शासन को भेजा था। इसके बाद यह संभावना बन रही थी कि शासन इस मामले में जरूर कार्रवाई करेगा। इसके बाद प्राधिकरण ने मुकेश गोयल को रिलीव कर दिया। उन्होंने गोरखपुर में ज्वाइन किया। अब उनको निलंबित कर दिया गया है।
तीन बार के संशोधित प्लान पर आरडब्ल्यूए ने उठाए थे सवाल
एमराल्ड कोर्ट आरडब्ल्यूए की ओर से 2006, 2009 और 2012 में किए गए तीन संशोधित प्लान को लेकर भी सवाल उठाए थे। इसमें प्राधिकरण ने बिल्डर को फ्लोर एरिया रेश्यो (एफएआर) बढ़ाने की अनुमति देते हुए बिल्डिंग प्लान मंजूरी किया था। इसमें टावर-1, 16 और 17 को लेकर सवाल खड़े किए गए थे कि नक्शा पास कराने के दौरान ग्रीन एरिया दिख रहा था, लेकिन बिल्डर ने निर्माण की अनुमति ले ली। इसके अलावा इमारत की ऊंचाई बढ़ाने के दौरान न्यूनतम दूरी का पालन नहीं किया। इससे वहां रहने वाले निवासियों में भय व्याप्त हो गया। उन्होंने भवन विनियमावली के विपरीत निर्माण को लेकर कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। एसआईटी की जांच में कई और भ्रष्टाचारियों का होगा खुलासा नोएडा। मुख्यमंत्री ने एमराल्ड कोर्ट के ट्विन टावर मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन का आदेश दिया है। जांच 2004 से 2017 तक की होगी। ऐसे में नोएडा प्राधिकरण के कई भ्रष्ट अधिकारियों के नाम सामने आएंगे। मुख्यमंत्री ने इससे पहले प्राथमिक रिपोर्ट मांगी थी। प्राधिकरण ने छह नामों की सूची भेज दी। यह अधिकारी प्रथम दृष्टया संदिग्धों की सूची में शामिल हैं। प्राधिकरण ने अपनी जो रिपोर्ट भेजी है वह केवल 2009 से 2012 के दौरान अलग-अलग चरणों में बिल्डर को होने वाले संभावित फायदे के आधार पर दी है, लेकिन अब एसआईटी जांच में यह दायरा 2004 से 2017 तक बढ़ा दिया गया है। ऐसे में भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की सूची में कई और नाम जुड़ेंगे। इसमें एमराल्ड कोर्ट के जमीन आवंटन से लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए आदेशों के क्रम में फ्लैट खरीदारों के 2016-17 के बीच पैसे वापसी तक की जांच होगी। इसमें अधिकारियों के अलावा बिल्डरों की गतिविधि पर भी नजर होगी। बिल्डर ने कहां-कहां प्राधिकरण से फायदा उठाया। इसकी भी जांच होगी। नक्शा पास करने से लेकर फ्लोर एरिया रेश्यो के मामले में नियोजन विभाग की सक्रियता सबसे ज्यादा है। नक्शे से इतर कहां-कहां निर्माण किया गया है। अगर निर्माण की बात सामने आती है तो कंम्पाउंडिंग (निर्माण को नियमित करने के लिए लगाई जुर्माने की राशि) लगाया गया या नहीं। अगर नहीं तो क्यों नहीं। इस दौरान तो कोई खेल नहीं हुआ। अगर एसीईओ की कमेटी की ओर से किसी मामले में संस्तुति होती है तो इसमें एसीईओ स्तर के नाम भी आ जाएंगे, लेकिन ज्यादा मामले नियोजन विभाग के ही होने की संभावना है। जहां भी नियमों का उल्लंघन होने की बात सामने आएगी। वहां नाम सूची में शामिल हो जाएगा। ऐसे में आगे कार्रवाई की गाज गिरेगी।
25 सीईओ और चेयरमैन के कार्यकाल का होगा मामला
2004 से 17 तक प्राधिकरण में 25 बार सीईओ और चेयरमैन के पदों पर वरिष्ठ अधिकारी बैठे। इसमें कुछ अधिकारी दो से तीन बार प्राधिकरण के सीईओ और चेयरमैन की कुर्सी पर बैठे। हालांकि, बताया जा रहा है कि रडार पर वरिष्ठ अधिकारियों के बदले इनसे नीचे के अधिकारी हैं, क्योंकि ज्यादातर मामले नियोजन विभाग से संबंधित रहे और इसे ज्यादा से ज्यादा एसीईओ के स्तर पर ही निपटाया गया।
नियोजन विभाग की भूमिका महत्वपूर्ण