‘शरजील ने मुस्लिमों में निराशा की भावना पैदा करने की कोशिश की थी’

‘शरजील ने मुस्लिमों में निराशा की भावना पैदा करने की कोशिश की थी’
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‘शरजील ने मुस्लिमों में निराशा की भावना पैदा करने की कोशिश की थी’

ये दलील दिल्ली पुलिस ने बृहस्पतिवार को शरजील के खिलाफ राजद्रोह के मामले में जिरह करते हुए बृहस्पतिवार को दी। जेएनयू छात्र शरजील इमाम ने अपने कथित भड़काऊ भाषणों के जरिये मुसलमानों में निराशा की भावना पैदा करने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा कि इमाम ने भारत की संप्रभुता को चुनौती दी और यह स्पष्ट किया कि तीन तलाक और कश्मीर असली मुद्दे हैं न कि सीएए या एनआरसी।

कड़कड़डूमा जिला अदालत में पुलिस की ओर से बहस करते हुए विशेष अधिवक्ता अमित प्रसाद ने उक्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान इमाम के द्वारा दिए गए भाषणों में इमाम ने कथित तौर पर धमकी दी थी असम और पूर्वोत्तर के शेष भाग को भारत से ‘काटा’ जा सकता है।

सुनवाई के दौरान, प्रसाद ने पश्चिम बंगाल के आसनसोल में इमाम द्वारा जनवरी 2020 में दिए गए भाषण को पढ़ते हुए कहा कि पिछले भाषणों में आरोपी ने स्पष्ट संकेत दिया कि मुसलमानों के लिये सब कुछ खत्म हो गया है और कोई उम्मीद नहीं बची है। मैं यही कहने की कोशिश कर रहा हूं कि वह निराशा की इस भावना को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा था कि हमारे पास कोई उम्मीद नहीं बची है। 
प्रसाद ने कथित भाषण के उस हिस्से का भी जिक्र किया जिसमें जेएनयू के छात्र ने कथित तौर पर डिटेंशन कैंप को आग लगाने के लिए कहा था। प्रसाद ने कहा, इससे ज्यादा और क्या कहा जा सकता है कि वह हिंसा भड़का रहा था?
बुधवार को, अभियोजक ने कहा था कि इमाम ने अपने कथित भड़काऊ भाषणों में से एक भाषण अस सलाम आलेकुम के अभिवादन से शुरू किया था, जो दर्शाता है कि यह संबोधन एक विशेष समुदाय के लिये था, न कि बड़े पैमाने पर जनता के लिए।
इमाम को 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिलिया इस्लामिया और 16 दिसंबर, 2019 को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिए गए भाषणों के लिये गिरफ्तार किया गया था। वह जनवरी 2020 से न्यायिक हिरासत में हैं।
दिल्ली पुलिस ने मामले में इमाम के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया था। इसमें आरोप लगाया गया था कि उसने कथित तौर पर केंद्र सरकार के प्रति नफरत, अवमानना और असंतोष को भड़काने वाले भाषण दिए और लोगों को भड़काया जिसके कारण दिसंबर 2019 में हिंसा हुई।