हुगली जिले में राक्षसी पूतना का अनोखा मंदिर: एक धार्मिक परंपरा

पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में स्थित राधा गोविंद मंदिर में राक्षसी पूतना की पूजा की जाती है। यह अनोखा मंदिर 100 वर्षों से अधिक पुराना है और जन्माष्टमी पर विशेष मेले का आयोजन होता है। अधिकारी परिवार की चार पीढ़ियों से चली आ रही इस पूजा की परंपरा में पूतना की पौराणिक कथा भी शामिल है। जानें इस मंदिर की विशेषता और इसके पीछे की रोचक कहानी।
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हुगली जिले में राक्षसी पूतना का अनोखा मंदिर: एक धार्मिक परंपरा

राधा गोविंद मंदिर की विशेषता

हुगली जिले में राक्षसी पूतना का अनोखा मंदिर: एक धार्मिक परंपरा


पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में एक अनोखा मंदिर है, जहां राक्षसी पूतना की पूजा की जाती है। यह पूजा लगभग 100 वर्षों से जारी है और जन्माष्टमी के अवसर पर यहां विशेष मेले का आयोजन होता है। यह मंदिर चंदननगर के लीचूपट्टी क्षेत्र में स्थित राधा गोविंदबाड़ी के नाम से जाना जाता है।


परंपरा और इतिहास

इस मंदिर की पूजा की परंपरा अधिकारी परिवार की चार पीढ़ियों से चली आ रही है। परिवार के बुजुर्गों के अनुसार, उनके पूर्वजों को सपने में पूतना के दर्शन हुए थे, जिसके बाद यहां उसकी प्रतिमा स्थापित की गई। गौर अधिकारी, परिवार के वरिष्ठ सदस्य, बताते हैं कि चंदननगर में फारसी शासन के आगमन से लगभग 100 वर्ष पहले उनके पूर्वजों ने महाभारत काल की पूतना की एक छोटी प्रतिमा स्थापित की थी, जिसे बाद में बड़ी मूर्ति में बदल दिया गया।


मंदिर की भव्यता

मंदिर में प्रवेश करते ही एक विशाल और डरावनी प्रतिमा देखने को मिलती है, जो किसी को भी चौंका सकती है। इस मूर्ति की आंखें बेहद डरावनी हैं और इसके दांत बड़े हैं। प्रतिमा की गोद में बाल कृष्ण विराजमान हैं, जो दूध पी रहे हैं। यह मूर्ति मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थित है, और इसके साथ-साथ भगवान राधा गोविंद, भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की प्रतिमाएं भी हैं। स्थानीय मान्यता के अनुसार, यहां पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


पूतना की पौराणिक कथा

श्रीमद्भागवत और अन्य पुराणों के अनुसार, कंस ने भगवान कृष्ण का वध करने के लिए पूतना नाम की राक्षसी को भेजा था। पूतना ने एक सुंदर महिला का रूप धारण कर गोकुल पहुंचकर कृष्ण की तलाश की। जब उसे पता चला कि यशोदा ने अष्टमी के दिन एक पुत्र को जन्म दिया है, तो वह उनके घर पहुंच गई।


कान्हा को देखकर पूतना ने उन्हें गोद में उठाया और विषैले दूध से उनका वध करने का प्रयास किया। लेकिन भगवान कृष्ण ने दूध पीते-पीते ही उसके प्राण ले लिए। पीड़ा से व्याकुल पूतना आसमान में उड़कर पास के जंगल में गिर गई और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। आश्चर्यजनक रूप से कृष्ण को कोई आंच नहीं आई और वे पूर्णत: सुरक्षित रहे।


यह कथा आज भी इस मंदिर की पूजा परंपरा से जुड़ी हुई है, जो इसे देश के अनोखे धार्मिक स्थलों में एक विशेष स्थान दिलाती है।