हिंदू धर्मग्रंथों के पाठ पर विवाद: धर्मनिरपेक्षता का असली अर्थ क्या है?
मध्य प्रदेश में पुलिस प्रशिक्षण के दौरान रामचरितमानस के पाठ को लेकर उठे विवाद ने धर्मनिरपेक्षता के असली अर्थ को फिर से परिभाषित किया है। इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों हिंदू धर्मग्रंथों से शिक्षा लेने पर विरोध होता है और इसके पीछे के राजनीतिक कारण क्या हैं। क्या यह सच में धर्मनिरपेक्षता का मामला है, या कुछ और? जानें इस मुद्दे की गहराई में जाकर।
Jul 29, 2025, 15:45 IST
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मध्य प्रदेश में रामचरितमानस का विवाद
हाल ही में मध्य प्रदेश में पुलिस प्रशिक्षण के दौरान रामचरितमानस के पाठ को लेकर विवाद ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न को जन्म दिया है: भारत में हिंदू धर्मग्रंथों से शिक्षा लेने पर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर विरोध क्यों होता है? भारत का औपनिवेशिक और विभाजन का इतिहास धार्मिक आधार पर गहरे घाव छोड़ गया है। जब किसी सरकारी संस्था में किसी विशेष धर्म के ग्रंथ को पढ़ने का निर्देश दिया जाता है, तो अन्य समुदायों में यह चिंता उत्पन्न होती है कि राज्य किसी विशेष धार्मिक पहचान को बढ़ावा दे रहा है।
अधिकतर मामलों में, विरोध करने वाले नेता या समूह यह सवाल उठाते हैं कि केवल हिंदू धर्मग्रंथों को ही क्यों चुना जाता है, जबकि अन्य धर्मों के ग्रंथों से भी नैतिक शिक्षा ली जा सकती है। ऐसा कहने वाले अक्सर इस डर में रहते हैं कि यदि वे हिंदू धर्मग्रंथों का समर्थन करेंगे, तो उन्हें "हिंदू-झुकाव" वाला दल कहा जाएगा, जिससे अल्पसंख्यक वोटरों का समर्थन कम हो सकता है। यही कारण है कि वे अत्यधिक धर्मनिरपेक्ष दिखने के प्रयास में हिंदू धर्म से जुड़ी बातों पर विरोध जताने लगते हैं।
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कुछ नेता यह मानते हैं कि हिंदू धर्मग्रंथों का समर्थन करने से वे "सांप्रदायिक" कहलाएँगे। इसलिए वे जानबूझकर विरोध करते हैं ताकि खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित कर सकें। इसके अलावा, चुनावी राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने के लिए हिंदू धर्म से जुड़े मुद्दों पर नकारात्मक रुख अपनाना ऐसे नेताओं के लिए एक रणनीति बन जाती है। धार्मिक ग्रंथों को "धर्म" के बजाय "सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों" के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। रामचरितमानस या गीता में जो कर्तव्यनिष्ठा, त्याग और सत्य की शिक्षा दी गई है, वह सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से प्रेरक हो सकती है। अंततः, हिंदू धर्म ग्रंथों का विरोध करने वालों को यह समझना चाहिए कि भारत की धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी धर्म को दबाना या नकारना नहीं है, बल्कि सभी धर्मों को समान सम्मान देना है।