हार्वर्ड के जीनियस टेड काजिंस्की: बमबारी की खौफनाक कहानी

टेड काजिंस्की की खौफनाक कहानी

टेड काजिंस्की, जिसे यूनाबॉम्बर के नाम से जाना जाता है, ने अमेरिका में आतंक फैलाने के लिए बमों का इस्तेमाल किया। उसकी नफरत आधुनिक जीवन और तकनीक के प्रति थी, और उसने इसका बदला लेने के लिए बमबारी का रास्ता चुना। यह कहानी एक ऐसे प्रोफेसर की है जिसने अपने बमों से लोगों की नींद उड़ा दी।
थियोडोर काजिंस्की का जन्म 1942 में अमेरिका में हुआ। वह बचपन से ही प्रतिभाशाली था और 16 साल की उम्र में हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने पहुंच गया। गणित में उसकी प्रतिभा अद्वितीय थी, और उसका आईक्यू स्कोर 167 था।
काजिंस्की ने 25 साल की उम्र में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में काम किया, लेकिन जल्द ही उसने नौकरी छोड़कर समाज से अलग रहने का निर्णय लिया। उसने कंप्यूटर के उपयोगकर्ताओं को अपना निशाना बनाना शुरू किया।
वह एक दूरदराज के स्थान पर रहने लगा, जहां उसने बम बनाने की प्रक्रिया शुरू की। काजिंस्की ने अपने बमों को लेटर या पार्सल में छिपाकर भेजा, जिससे कई लोग उसकी चपेट में आए।
17 वर्षों तक, उसने कई लोगों को बम भेजे, जिससे अमेरिका में दहशत फैल गई। एफबीआई को उसकी पहचान करने में कठिनाई हुई, और उसे यूनाबॉम्बर का नाम दिया गया।
1995 में, उसने अपना मैनिफेस्टो प्रकाशित किया, जिसमें उसने तकनीक और आधुनिक जीवन के खिलाफ अपने विचार व्यक्त किए।
अप्रैल 1996 में, उसे मोंटाना में गिरफ्तार किया गया। उसके पास बम बनाने का सामान और कई पत्रिकाएं थीं।
काजिंस्की को चार बार उम्रकैद की सजा मिली, लेकिन 10 जून को उसे जेल में मृत पाया गया। इस प्रकार, एक प्रतिभाशाली व्यक्ति ने गलत रास्ता चुनकर अपनी जिंदगी का अंत कर लिया।