स्लीप टॉक थेरेपी: बच्चों की परवरिश में सकारात्मक बदलाव लाने की नई तकनीक

बच्चों की परवरिश में नई तकनीक
बच्चों की परवरिश में सही-गलत की समझाना एक चुनौती हो सकता है। बच्चे अक्सर अपने माता-पिता की बातों को पूरी तरह से नहीं समझ पाते और कई बार गलत आदतें भी अपना लेते हैं। ऐसे में 'स्लीप टॉक थेरेपी' एक नई उम्मीद बनकर उभरी है।
स्लीप टॉक थेरेपी की परिभाषा
यह एक पेरेंटिंग तकनीक है जिसमें बच्चे की गहरी नींद के दौरान सकारात्मक संवाद किया जाता है। इस समय बच्चे का मस्तिष्क सजग रहता है, लेकिन सवाल नहीं करता, जिससे उनकी अवचेतन मानसिकता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रक्रिया से बच्चों के व्यवहार में धीरे-धीरे सुधार किया जा सकता है।
बिना डांट के बदलाव
जब बच्चा सो जाता है, तो उसका चेतन मन सो जाता है, लेकिन अवचेतन मन जागरूक रहता है। माता-पिता जब गहरी नींद में बच्चे से प्यार भरी बातें करते हैं, तो यह सीधे उनके अवचेतन मन तक पहुंचती हैं और नई अच्छी आदतों को विकसित करती हैं। यह तरीका बिना डांट-फटकार के बच्चे की सोच में बदलाव लाने का एक सुनहरा अवसर है।
थेरेपी का तरीका
सूरत के एक पीडियाट्रिशियन के अनुसार, स्लीप टॉक थेरेपी सरल और प्रभावी है। बच्चे के सोने के 1-2 घंटे बाद, जब वह गहरी नींद में हो, माता-पिता उसके सिरहाने बैठकर प्यार भरे लहजे में उसकी तारीफ करें और सकारात्मक बातें कहें। उदाहरण के लिए, 'राहुल, मम्मी तुमसे बहुत प्यार करती हैं, तुम बहादुर हो।' इस तरह की बातें कई बार दोहराएं।
किस उम्र के बच्चे को लाभ?
स्लीप टॉक थेरेपी सभी उम्र के बच्चों पर प्रभाव डालती है, लेकिन विशेष रूप से 3 से 12 साल के बच्चों में यह अधिक प्रभावी होती है। यह तकनीक बच्चों के डर, झिझक, गुस्से और अन्य नकारात्मक आदतों को दूर करने में मदद कर सकती है।
विशेषज्ञों की राय
पेरेंटिंग विशेषज्ञों का मानना है कि यह थेरेपी बच्चों को बिना डांट-फटकार सकारात्मक बदलाव की ओर ले जाती है, जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उनके व्यवहार में सुधार होता है।
निष्कर्ष
स्लीप टॉक थेरेपी बच्चों के मानसिक विकास और बेहतर परवरिश का एक सरल और प्रभावी तरीका है। माता-पिता को इसे अपनी दिनचर्या में शामिल करना चाहिए ताकि उनके बच्चे खुद को बेहतर समझ सकें और अच्छे इंसान बन सकें।