स्माइल मुद्रा थेरेपी: स्वास्थ्य के लिए एक अनोखी चिकित्सा पद्धति

स्माइल मुद्रा थेरेपी एक अनोखी चिकित्सा पद्धति है जो योग और प्राणायाम से अलग है। यह तकनीक मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, और अन्य जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के उपचार में सहायक है। भोपाल के विशेषज्ञ डॉ. पंकज जैन के अनुसार, यह थेरेपी मरीज की बीमारी के अनुसार विशेष मुद्राएं सिखाती है। जानें कैसे यह तकनीक आपके स्वास्थ्य को बेहतर बना सकती है और किन बीमारियों का इलाज संभव है।
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स्माइल मुद्रा थेरेपी: स्वास्थ्य के लिए एक अनोखी चिकित्सा पद्धति

स्माइल मुद्रा का महत्व

योग, प्राणायाम और ध्यान के दौरान मुद्राओं का अभ्यास किया जाता है। ये मुद्राएं मन की एकाग्रता, आंतरिक शांति और समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती हैं। हाथों और उंगलियों की विशेष स्थिति से शरीर की ऊर्जा संतुलित रहती है, जिससे कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं में राहत मिलती है। स्माइल मुद्रा थेरेपी एक चिकित्सा पद्धति है, जो सामान्य योग मुद्राओं से भिन्न है। आइए जानते हैं कि यह क्या है और यह किन बीमारियों का उपचार करती है।


मुद्रा हीलिंग थेरेपी क्या है?

भोपाल के स्माइल मेडिटेशन एकेडमी के निदेशक डॉ. पंकज जैन के अनुसार, स्माइल मुद्रा हीलिंग एक चिकित्सीय तकनीक है। इसमें हर मरीज को उसकी बीमारी के अनुसार विशेष मुद्राएं सिखाई जाती हैं। इसके साथ ही स्माइल मेडिटेशन का अभ्यास भी कराया जाता है। इस प्रक्रिया में मरीज को उनकी बीमारी के अनुसार विभिन्न मुद्राएं करने के लिए कहा जाता है, जिसमें सांस लेने और मुस्कुराने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है।


कौन-कौन सी बीमारियों का इलाज संभव है?

मुद्रा हीलिंग तकनीक का उपयोग मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हार्मोनल असंतुलन जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के नियंत्रण में किया जा सकता है। मरीजों को ध्यान करने के साथ-साथ आवश्यकतानुसार मुद्राओं के बिंदुओं पर दबाव, एक्यूपंक्चर और रंग चिकित्सा का भी सहारा लिया जाता है। जो लोग उपचार के लिए आते हैं, उन्हें स्माइल मुद्रा क्लिनिक में विशेष मुद्राएं सिखाई जाती हैं, और फिर उन्हें घर पर इनका अभ्यास करने के लिए कहा जाता है। यह सेवा ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से उपलब्ध है।


मुद्राओं की विविधता

डॉ. पंकज बताते हैं कि मरीज की बीमारी के अनुसार यह निर्धारित किया जाता है कि उसे कौन सी मुद्रा करनी है। मुद्राओं की संख्या अनगिनत है और यह पूरी तरह से मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है।