सोन पापड़ी: दिवाली की मिठाई का दिलचस्प इतिहास

दिवाली का खास स्वाद
जैसे ही दिवाली का त्योहार नजदीक आता है, बाजारों में सोन पापड़ी की धूम मच जाती है। यह मिठाई हर गिफ्ट बॉक्स में अनिवार्य रूप से पाई जाती है। हालांकि, इसकी लोकप्रियता के साथ-साथ इसका मजाक भी उड़ाया जाता है। सोशल मीडिया पर इसे ऐसे डिब्बे के रूप में दर्शाया जाता है, जो बिना खोले एक घर से दूसरे घर पहुंच जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सोन पापड़ी का इतिहास कितना दिलचस्प है? चलिए, इस मीठी मिठाई की कहानी को और विस्तार से जानते हैं।
साल भर की मिठाई
सोन पापड़ी एक ऐसी मिठाई है जो न केवल सस्ती है, बल्कि आसानी से उपलब्ध भी है। इसे बनाने में दूध का उपयोग नहीं होता, जिससे यह लंबे समय तक खराब नहीं होती। भारतीय खाद्य विशेषज्ञों का कहना है कि सोन पापड़ी न केवल किफायती है, बल्कि इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है। यही कारण है कि यह हमेशा बाजार में उपलब्ध रहती है। यह मिठाई केवल दिवाली तक सीमित नहीं है, बल्कि साल भर रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और यहां तक कि एयरपोर्ट्स पर भी बिकती है।
पंजाब की मिठाई का सफर
भारतीय मिठाई विशेषज्ञों के अनुसार, सोन पापड़ी की उत्पत्ति पंजाब से जुड़ी हुई है। इसकी शुरुआत पंजाब की पारंपरिक मिठाई पतीसे से हुई थी। पतीसे को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल थी, जिसमें चीनी की चाशनी को बार-बार फैलाकर पीटा जाता था, जिससे इसके रेशे रेशम की तरह बारीक हो जाते थे। समय के साथ, पतीसे का यह नया रूप सोन पापड़ी के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
फारसी मिठाई का प्रभाव
कुछ मिठाई विशेषज्ञों का मानना है कि सोन पापड़ी की उत्पत्ति फारसी मिठाई पश्मक से हुई है। पश्मक का अर्थ है ऊन जैसी बनावट वाली मिठाई। इतिहासकारों के अनुसार, 19वीं सदी में मुंबई की गलियों में फारसी व्यापारी पश्मक बेचा करते थे। फिर भी, चाहे इसकी जड़ें कहीं भी हों, सोन पापड़ी अपने आप में एक अनोखी मिठाई है। यह मुँह में जाते ही घुल जाती है और इसका स्वाद सभी को भाता है। बिना दूध के बनी यह मिठाई लंबे समय तक ताजा रहती है और इसे किसी भी दुकान से कभी भी खरीदा जा सकता है।