सेक्स वर्कर्स की कठिनाइयाँ: रुख्साना और मीरा की कहानी

सेक्स वर्कर्स की जिंदगी की सच्चाई
रुख्साना (बदला हुआ नाम) एक कमरे में लेटी हुई मिलीं। उनकी उम्र लगभग 46 वर्ष है, और उनकी आंखों में थकान झलक रही थी, जैसे उनके चेहरे पर एक अनकही कहानी हो।
उन्होंने कहा, "अब तो कोई आता भी नहीं... मेरी कमर भी जवाब देने लगी है, लेकिन गुज़ारा कैसे करूँ?"
मीरा (बदला नाम) के दो बच्चे हैं, जो ननिहाल में रह रहे हैं। शुरुआत में वह बात करने के लिए तैयार नहीं थीं, लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने अपनी स्थिति साझा की। मीरा ने बताया कि उनका हाल भी रुख्साना जैसा है।
वह कहती हैं, "पहले दिन में चार से छह ग्राहक आते थे, अब हफ्ते में एक भी नहीं। बुढ़ापे में ग्राहक भी पूछते हैं- 'नई लड़की है क्या?'... हमें तो बस छांट दिया गया है।"
भारत में सेक्स वर्क पूरी तरह से अवैध नहीं है, लेकिन इसमें काम करने वाली महिलाओं की जिंदगी बेहद कठिन है। अधिकांश महिलाएं मजबूरी के कारण इस क्षेत्र में आती हैं और उन्हें कोई कानूनी पहचान या सुरक्षा नहीं मिलती। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से काम करने वाली सेक्स वर्कर्स को परेशान न करने का आदेश दिया था, लेकिन जमीनी स्तर पर क्या बदलाव आया है? यह इन अधेड़ उम्र की सेक्स वर्कर्स की स्थिति देखकर स्पष्ट होता है।
बीमारियों, बेइज़्ज़ती और बेबसी का सामना कर रही ये महिलाएं उम्र के साथ-साथ अकेलेपन और गरीबी का भी सामना कर रही हैं। कुछ लोग कहते हैं, "बुढ़िया अब क्यों बैठी है?" तो कुछ पूछते हैं, "अब तो शर्म आनी चाहिए।"
हालांकि, कुछ प्रयास किए जा रहे हैं। गोवा में 'प्रभात' योजना के तहत सेक्स वर्कर्स को कौशल प्रशिक्षण दिया जाता है। कोलकाता में DMSC (दुर्बार महिला समन्वय समिति) जैसी संस्थाएं स्वास्थ्य और शिक्षा में मदद करती हैं। लेकिन दिल्ली और आगरा की गलियों में रहने वाली रुख्साना और मीरा जैसी महिलाओं तक ये योजनाएं नहीं पहुँच पातीं।
क्या किया जा सकता है?
इसका समाधान एक लंबी सूची में है, लेकिन शुरुआत में कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए-
कानूनी मान्यता प्रदान करना ताकि उन्हें श्रमिकों के समान अधिकार मिल सकें।
पेंशन, स्वास्थ्य कार्ड, राशन और आवास जैसी न्यूनतम जीवन की गारंटी।
पुनर्वास योजनाएं- जिनके पास कोई विकल्प नहीं है, उन्हें नए विकल्प प्रदान करना।