सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जजों के प्रदर्शन पर उठाए सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जजों के प्रदर्शन पर गंभीर सवाल उठाए हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया है कि जजों के लिए एक प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली बनाई जाए। उन्होंने कहा कि कुछ जज अपने कार्य में उत्कृष्टता दिखा रहे हैं, जबकि अन्य को सुधार की आवश्यकता है। कोर्ट ने यह भी बताया कि सुनवाई में देरी और स्थगन से पेंडेंसी बढ़ती है, जिससे न्यायपालिका की छवि प्रभावित होती है। जानें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर पूरी जानकारी।
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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जजों के प्रदर्शन पर उठाए सवाल

जजों के प्रदर्शन का मूल्यांकन आवश्यक

कुछ उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश अपने कार्य को सही तरीके से नहीं निभा पा रहे हैं। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने सुझाव दिया है कि जजों के लिए एक प्रदर्शन मूल्यांकन प्रणाली विकसित की जानी चाहिए। यह टिप्पणी उन्होंने 22 सितंबर 2025 को कोर्ट में की। जस्टिस सूर्यकांत का मानना है कि ऐसे मानदंड और दिशानिर्देश स्थापित किए जाने चाहिए, जिनसे जजों के कार्यों का मूल्यांकन किया जा सके। अब हम आपको बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को क्यों फटकार लगाई है?


मामले का विवरण

क्या है पूरा मामला 

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ झारखंड हाई कोर्ट में लंबित मामलों की सुनवाई कर रही थी। इसमें लगभग तीन वर्षों तक एक आपराधिक अपील का निर्णय सुरक्षित रखा गया था। सुनवाई के दौरान, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कोटिश्वर सिंह ने कहा कि वे हाई कोर्ट के जजों के लिए स्कूल प्रिंसिपल की तरह कार्य नहीं करना चाहते, लेकिन यह आवश्यक है कि एक स्व-प्रबंधन प्रणाली हो, ताकि फाइलों का ढेर न लगे। उन्होंने कहा कि कुछ न्यायाधीश दिन-रात काम कर रहे हैं और मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा कर रहे हैं, जबकि कुछ ऐसे भी हैं जो काम पूरा करने में असमर्थ हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने स्पष्ट किया कि हर मामले को एक ही तराजू में नहीं तौला जा सकता।


सुनवाई में देरी का समाधान नहीं

सुनवाई को टालना समाधान नहीं 

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी बताया कि रति लाल जावेड़ भाई परमान बनाम राज्य ऑफ गुजरात मामले में कहा गया था कि यदि कोर्ट केवल ऑपरेटिव भाग सुनाता है, तो 5 दिनों के भीतर पूरा निर्णय अपलोड होना चाहिए। यदि कोई व्यावहारिक समस्या है, तो सुप्रीम कोर्ट इस समय सीमा को 10-15 दिन तक बढ़ा सकता है, लेकिन इससे अधिक नहीं। उन्होंने चेतावनी दी कि बार-बार स्थगन के माध्यम से सुनवाई को टालना न तो समाधान है और न ही स्वस्थ तरीका। इससे पेंडेंसी बढ़ती है और पक्षकार हतोत्साहित होते हैं।


हाई कोर्ट के फैसलों की स्थिति

विभिन्न हाई कोर्टों के फैसलों की स्टेटस रिपोर्ट पेश 

पीठ ने कुछ आपराधिक अपीलों पर टिप्पणी की। आजीवन कारावास और मृत्युदंड की सजा पाए कुछ दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, यह आरोप लगाते हुए कि झारखंड हाई कोर्ट ने वर्षों तक उनके मामलों का निर्णय नहीं सुनाया। हालांकि, बाद में हाई कोर्ट ने उनके मामलों में निर्णय सुनाया और कई दोषियों को बरी कर दिया। मामले में वकील फौजिया शकील ने विभिन्न हाई कोर्टों द्वारा दिए गए फैसलों की स्थिति पर एक चार्ट प्रस्तुत किया और बताया कि कुछ उच्च न्यायालयों ने निर्धारित प्रारूप में आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं।