सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची के पुनरीक्षण पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर गंभीर चिंताएं व्यक्त की हैं। न्यायालय ने चुनाव आयोग के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह लोकतंत्र पर हमला कर सकता है। सुनवाई के दौरान, आयोग ने मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी। जानें इस महत्वपूर्ण मामले के सभी पहलुओं के बारे में।
Jul 10, 2025, 15:29 IST
|

सुप्रीम कोर्ट की चिंता
गुरुवार को, सुप्रीम कोर्ट ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा नवंबर में प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव के लिए मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के समय को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की। कोर्ट ने इस प्रक्रिया के समय पर सवाल उठाते हुए व्यावहारिक और कानूनी आधारों का हवाला दिया, लेकिन इस पर रोक नहीं लगाई। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने चुनाव से कुछ महीने पहले संशोधन शुरू करने के आयोग के निर्णय पर सवाल उठाया, यह कहते हुए कि यह कदम “लोकतंत्र और मतदान की शक्ति पर हमला करता है।” कोर्ट ने कहा कि वे आयोग को रोक नहीं रहे हैं, बल्कि कानून के अनुसार कार्य करने के लिए कह रहे हैं। इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
मतदाता सूची में संशोधन की आवश्यकता
न्यायमूर्ति धूलिया ने चुनाव के निकट मतदाता सूची में संशोधन के संभावित प्रभावों की ओर इशारा करते हुए कहा कि यदि बिहार में नागरिकता की जांच करनी है, तो यह पहले ही किया जाना चाहिए था। हालांकि, न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग के पास ऐसा संशोधन करने का अधिकार नहीं है। पीठ ने स्पष्ट किया कि मतदाता सूची में संशोधन करना चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है, और यह भी बताया कि पिछली बार ऐसा 2003 में किया गया था।
चुनाव आयोग का बचाव
सुनवाई के दौरान, चुनाव आयोग ने एसआईआर का समर्थन करते हुए कहा कि यह आवश्यक है कि योग्य मतदाताओं को जोड़ा जाए और अपात्र मतदाताओं को हटाया जाए ताकि मतदाता सूची की अखंडता बनी रहे। आयोग ने यह भी कहा कि आधार नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 326 के अनुसार केवल भारतीय नागरिक ही मतदान के लिए पात्र हैं। आयोग की ओर से वरिष्ठ वकील द्विवेदी ने सवाल उठाया कि यदि आयोग के पास मतदाता सूची को संशोधित करने का अधिकार नहीं है, तो फिर यह अधिकार किसके पास है? उन्होंने न्यायालय को आश्वासन दिया कि किसी भी व्यक्ति का नाम तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक उसे अपना पक्ष रखने का अवसर न दिया जाए।
आधार को बाहर रखने पर सवाल
पीठ ने निर्वाचन आयोग द्वारा एसआईआर प्रक्रिया से आधार को बाहर रखने पर भी सवाल उठाया, यह कहते हुए कि नागरिकता के मामले गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, न कि चुनाव आयोग के। शीर्ष अदालत में आयोग के फैसले को चुनौती देते हुए 10 से अधिक याचिकाएँ दायर की गई हैं, जिनमें एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स की याचिका भी शामिल है। प्रमुख याचिकाकर्ताओं में राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, राकांपा (सपा) नेता सुप्रिया सुले, भाकपा के डी राजा, सपा के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झामुमो के सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य शामिल हैं।