सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ मामले में पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की पुष्टि की

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
सुप्रीम कोर्ट.
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए फर्जी मुठभेड़ के मामले में पंजाब के नौ पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या के आरोपों को खारिज करने से इनकार कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सादे कपड़ों में किसी वाहन को घेरकर उस पर गोली चलाना पुलिस के कर्तव्यों में नहीं आता है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि यह तर्क कि आरोपी पुलिसकर्मी अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन कर रहे थे, न्याय को विफल करने का प्रयास है। अदालत ने यह भी बताया कि ऐसे मामलों में अभियोजन की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती।
घटना का विवरण
यह मामला 16 जून 2015 को पंजाब के अमृतसर जिले के वेरका-बटाला रोड पर हुई गोलीबारी से संबंधित है। शिकायत के अनुसार, नौ पुलिसकर्मी सफेद रंग की हुंडई आई-20 कार को रोकते हैं और सादे कपड़ों में उतरकर बिना चेतावनी के फायरिंग करते हैं, जिससे कार में सवार मुखजीत सिंह की मौके पर ही मौत हो जाती है।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि घटना के बाद पुलिस उपायुक्त परमपाल सिंह मौके पर पहुंचे और सबूत मिटाने के लिए कार की नंबर प्लेट हटाने का आदेश दिया। अदालत ने इस आरोप को भी बरकरार रखा है।
हाई कोर्ट का निर्णय
सुनवाई के दौरान पुलिसकर्मियों ने कहा कि उनके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन की अनुमति नहीं ली गई, लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि यह तर्क तब लागू होता है जब कृत्य वैध कर्तव्यों से जुड़ा हो, न कि जब वे न्याय को बाधित करने के लिए हथियार उठाएं।
अदालत ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के 20 मई 2019 के निर्णय को भी बरकरार रखा, जिसमें आरोपियों के खिलाफ केस को रद्द करने से इनकार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला प्रथम दृष्टया एक संगठित हमले का प्रतीत होता है और ट्रायल के लिए पर्याप्त आधार मौजूद हैं। अब यह मामला निचली अदालत में आगे बढ़ेगा, जहां आरोप तय कर विधिवत सुनवाई की जाएगी।