सुप्रीम कोर्ट ने पेयजल मानकों पर याचिका खारिज की, ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति पर चिंता

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को पैकेटबंद पेयजल के मानकों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि देश के कई हिस्सों में बुनियादी पेयजल की कमी है और यह याचिका शहरी केंद्रित दृष्टिकोण का प्रतीक है। मुख्य न्यायाधीश ने ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की स्थिति पर चिंता व्यक्त की और याचिकाकर्ता को वास्तविकता को समझने का सुझाव दिया।
 | 
सुप्रीम कोर्ट ने पेयजल मानकों पर याचिका खारिज की, ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति पर चिंता

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

गुरुवार को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि देश के कई हिस्सों में अभी भी बुनियादी पेयजल की कमी बनी हुई है। अदालत ने पैकेटबंद पेयजल के मानकों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने इसे "लक्जरी मुकदमा" करार देते हुए कहा कि यह शहरी क्षेत्रों की चिंता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में लोग भूजल पर निर्भर हैं।


अदालत ने कहा कि देश के नागरिकों को बुनियादी पेयजल की उपलब्धता में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता सारंग वामन यादवाडकर से कहा कि गुणवत्ता का मुद्दा बाद में आएगा।


याचिका में सारंग ने यह दावा किया था कि भारत में बोतलबंद पानी के मानक पुराने हो चुके हैं और कंपनियों को यूरो-2 मानकों को अपनाने के लिए अनिवार्य करने की मांग की थी। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता को वास्तविकता को समझने का सुझाव दिया।


न्यायालय ने यह भी कहा कि भारत अमेरिका या यूरोप में लागू दिशानिर्देशों को बिना सोचे-समझे नहीं अपना सकता। मुख्य न्यायाधीश ने सवाल उठाया कि क्या भारत में पेयजल की चुनौतियों को देखते हुए ब्रिटेन, सऊदी अरब और ऑस्ट्रेलिया के मानकों को लागू किया जा सकता है।


उन्होंने कहा कि पैकेटबंद पानी के मानक भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और यह याचिका "शहरी केंद्रित दृष्टिकोण" का प्रतीक है।