सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों के आरोपियों की जमानत याचिका पर नोटिस जारी किया
सुप्रीम कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के आरोपियों की जमानत याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। याचिकाकर्ताओं में शरजील इमाम और उमर खालिद शामिल हैं, जिन्होंने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी। उच्च न्यायालय ने उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया था, यह कहते हुए कि मामला गंभीर है और इससे कानून-व्यवस्था प्रभावित हो सकती है। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और सुनवाई की तारीख।
Sep 22, 2025, 18:13 IST
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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के संदर्भ में आरोपियों की जमानत याचिका को खारिज करने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ताओं में शरजील इमाम, उमर खालिद, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और शिफा उर रहमान शामिल हैं, जिन्होंने उच्च न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती दी, जिसमें उन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जमानत देने से मना कर दिया गया था।
सुनवाई की तारीख और मामले की गंभीरता
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 7 अक्टूबर को निर्धारित की है। पिछले पांच वर्षों से जेल में बंद कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य को इस महीने की शुरुआत में दिल्ली उच्च न्यायालय ने जमानत देने से इनकार कर दिया था। यह मामला फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के पीछे की कथित साजिश से संबंधित है। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शैलिंदर कौर की पीठ ने खालिद, इमाम, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, मीरान हैदर, अब्दुल खालिद सैफी, गुलफिशा फातिमा और शादाब अहमद द्वारा दायर सभी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया।
उच्च न्यायालय का निर्णय
उच्च न्यायालय ने इमाम और खालिद की दलीलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मामला प्रथम दृष्टया गंभीर प्रतीत होता है और दोनों ने मुस्लिम समुदाय के सदस्यों को बड़े पैमाने पर लामबंद करने के लिए भाषण दिए थे। आदेश में कहा गया है कि यदि विरोध करने के अप्रतिबंधित अधिकार का प्रयोग किया गया, तो यह संवैधानिक ढांचे को नुकसान पहुँचाएगा और देश की कानून-व्यवस्था को प्रभावित करेगा। नागरिकों द्वारा विरोध या प्रदर्शन की आड़ में किसी भी षड्यंत्रकारी हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती। ऐसी कार्रवाइयों को राज्य मशीनरी द्वारा नियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि ये अभिव्यक्ति, भाषण और संघ बनाने की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं आतीं।