सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी: क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता का खतरा

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों द्वारा क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने पर चिंता व्यक्त की है, इसे भारत की एकता के लिए खतरा बताया। न्यायालय ने कहा कि धर्म या जाति के नाम पर राजनीति केवल एक पार्टी की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे तंत्र की कमजोरी है। AIMIM का पंजीकरण रद्द करने की याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने राजनीतिक सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। यह टिप्पणी भारतीय लोकतंत्र की गंभीर बीमारियों की ओर इशारा करती है और भविष्य में सभी दलों के लिए समान सुधार की मांग की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
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सुप्रीम कोर्ट की चेतावनी: क्षेत्रीयता और सांप्रदायिकता का खतरा

सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को राजनीतिक दलों द्वारा क्षेत्रीयता को बढ़ावा देने पर चिंता जताई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने कहा कि यह देश की एकता और अखंडता के लिए उतना ही खतरनाक है, जितना कि समाज में सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देना। उन्होंने कहा, "क्षेत्रीय दल चुनावों के दौरान क्षेत्रीयता के आधार पर वोट मांगते हैं। क्या यह देश की एकता के खिलाफ नहीं है?" यह टिप्पणी उस समय आई जब अदालत ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) का पंजीकरण रद्द करने की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया। अदालत ने कहा कि जब कई दल सांप्रदायिकता में लिप्त हैं, तो वह किसी एक पार्टी को निशाना नहीं बना सकती।


याचिका का खारिज होना

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना शिवसेना के अध्यक्ष तिरुपति नरसिंह मुरारी द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें AIMIM का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में की गई टिप्पणियों को भारतीय लोकतंत्र और राजनीतिक व्यवस्था की गहराई से जांच करने का अवसर बताया।


धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा

याचिकाकर्ता का तर्क था कि AIMIM का संविधान और उसकी गतिविधियां भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि AIMIM केवल मुस्लिम समुदाय के हित में काम कर रही है, जो संविधान के मूल स्वरूप के प्रतिकूल है। न्यायालय ने कहा कि ऐसी याचिकाएं किसी एक पार्टी को लक्षित नहीं करनी चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धर्म या जाति के नाम पर राजनीति केवल एक पार्टी की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे तंत्र की कमजोरी है।


राजनीतिक सुधार की आवश्यकता

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्वीकार किया कि भारत में कई क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दल धर्म, जाति, और समुदाय आधारित राजनीति को बढ़ावा देते हैं। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र को कमजोर करती है। अदालत ने कहा कि जब तक कोई पार्टी संविधान के खिलाफ नहीं जा रही, तब तक उसकी मान्यता समाप्त करने का कोई आधार नहीं है। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वे ऐसी याचिका दाखिल करें जो सभी राजनीतिक दलों के लिए समान हो।


न्यायपालिका का रुख

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख संकेत करता है कि भविष्य में ऐसी याचिकाएं दाखिल होंगी जो सभी दलों की कार्यप्रणाली में सुधार की मांग करेंगी। भारत में चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की भूमिका को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी पार्टी संविधान के मूल्यों के खिलाफ कार्य न करे।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को केवल एक अदालती निर्णय के रूप में नहीं देखना चाहिए। यह भारत की लोकतांत्रिक राजनीति की गंभीर बीमारियों की ओर इशारा करती है। उच्चतम न्यायालय की बातों से उम्मीद है कि देश में धर्म, जाति, और समुदाय आधारित राजनीति करने वाले दलों के खिलाफ जनमत तैयार होगा।