सुप्रीम कोर्ट की चिंता: छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामले और नई गाइडलाइंस

सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता जताई है और इस संदर्भ में 15 नई गाइडलाइंस जारी की हैं। ये दिशा-निर्देश सभी शिक्षण संस्थानों पर लागू होंगे और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का निर्देश देते हैं। कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए ठोस कानून की आवश्यकता है। हाल की घटनाओं में छात्रों की आत्महत्या के मामलों ने इस मुद्दे को और भी गंभीर बना दिया है। जानें इन गाइडलाइंस में क्या-क्या शामिल है और कैसे ये छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकती हैं।
 | 
सुप्रीम कोर्ट की चिंता: छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामले और नई गाइडलाइंस

छात्रों की आत्महत्या पर सुप्रीम कोर्ट की गंभीरता

"तुझे सूरज कहूँ या चंदा, तुझे दीप कहूँ या तारा, मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा" 70 के दशक की फिल्म एक फूल दो माली का यह गीत माता-पिता की उम्मीदों को दर्शाता है। जब वे अपने बच्चों के भविष्य को लेकर आशान्वित होते हैं, तो उन्हें लगता है कि उनका बच्चा कुछ नया और सकारात्मक करेगा। लेकिन हालात कुछ और ही हैं। देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है और कहा है कि कैंपस में कुछ गंभीर समस्याएं हैं, जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए इस मामले को उठाया है।
हाल ही में आईआईटी खड़गपुर में एक अंडरग्रैजुएट छात्र ने आत्महत्या कर ली, जबकि ग्रेटर नोएडा की शादरा यूनिवर्सिटी में बीडीएस की छात्रा ज्योति शर्मा ने भी ऐसा ही कदम उठाया। उसने अपने सुसाइड के पीछे दो फैकल्टी सदस्यों का नाम लिया। कुछ समय पहले नेपाल की एक लड़की ने भी इसी कारण आत्महत्या की थी। आत्महत्या के मामलों पर चर्चा अक्सर होती है, लेकिन सवाल यह है कि युवा पीढ़ी इतनी हताश क्यों हो जाती है? परिवार अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजने में मेहनत करते हैं, लेकिन कई कारणों से बच्चे आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस स्थिति पर ध्यान देने की आवश्यकता है।


सीबीआई जांच की मांग और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने एक छात्रा की मौत की सीबीआई जांच की मांग को खारिज कर दिया, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर चिंता व्यक्त की और कहा कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए देश में कोई ठोस कानून नहीं है। इस संदर्भ में, कोर्ट ने 15 गाइडलाइंस जारी की हैं, जो सभी सरकारी और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों पर लागू होंगी। ये गाइडलाइंस तब तक प्रभावी रहेंगी जब तक कि कोई कानून नहीं बन जाता।


आत्महत्या के आंकड़े और चिंताजनक स्थिति

1 लाख 70 हजार सुसाइड केस में 13 हजार छात्र

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट में आत्महत्या के बढ़ते आंकड़े चिंताजनक हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में देशभर में 1 लाख 70 हजार 924 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 13,044 छात्र थे। 2001 में छात्रों की आत्महत्या के आंकड़े 5,425 थे। एनसीआरबी के अनुसार, 100 आत्महत्याओं में लगभग 8 छात्र शामिल थे, जिनमें से 2,248 ने परीक्षा में असफलता के कारण जान दी।


छात्रों की आत्महत्या की दर

किसानों से ज्यादा छात्र कर रहे आत्महत्या

 दिहाड़ी मजदूर  25.6%
 स्वरोजगार  12.3%
 नौकरीपेशा  9.7%
 बेरोजगार  8.4%
 स्टूडेंट  8%
 किसान  6%

 *ये 2021 का डेटा है। (सोर्स- IC3 रिपोर्ट 2024) 


सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशा-निर्देश

कोर्ट 15 अहम दिशा-निर्देश जारी किए

1. सभी शिक्षण संस्थानों को 'उम्मीद', 'मनोदर्पण' और राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति पर आधारित मानसिक स्वास्थ्य नीति अपनानी होगी। हर साल अपडेट कर वेबसाइट व सूचना बोर्ड पर लगाना होगा।
2. जहां 100 से अधिक छात्र हों, वहां प्रशिक्षित काउंसलर, मनोवैज्ञानिक या सोशल वर्कर नियुक्त हों; छोटे संस्थान बाहरी विशेषज्ञों से जुड़ें।
3. परीक्षा या कोर्स बदलाव के समय हर छात्र समूह को एक मेंटर या काउंसलर दिया जाए।
4. कोचिंग संस्थान प्रदर्शन के आधार पर बैच न बनाएं और न ही छात्रों को शर्मिंदा करें।
5. शिक्षण संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं, अस्पतालों और हेल्पलाइन से संपर्क की व्यवस्था हो; हेल्पलाइन नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित हों।
6. संस्थान सभी शिक्षकों व स्टाफ को साल में दो बार मेंटल हेल्थ और आत्महत्या संकेतों की ट्रेनिंग दें।
7. कमजोर वर्गों जैसे-एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस, एलजीबीटीक्यू, विकलांग, अनाथ या मानसिक संकट से जूझ रहे छात्रों से भेदभाव न हो।
8. यौन उत्पीड़न, रैगिंग और भेदभाव के मामलों में कार्रवाई के लिए समिति बने, पीड़ित को सहायता और सुरक्षा मिले।
9. अभिभावकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम हों ताकि वे तनाव पहचानें और दबाव न डालें।
10. संस्थान हर साल रिपोर्ट बनाएं, जिसमें काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य का विवरण हो। इसे यूजीसी जैसी नियामक संस्था को भेजा जाए।
11. पाठ्यक्रम के साथ खेल, कला और व्यक्तित्व विकास पर ध्यान हो, परीक्षा प्रणाली छात्रहित में हो।
12. छात्रों और अभिभावकों के लिए नियमित करियर काउंसलिंग हो। विविध विकल्पों की जानकारी दें। छात्रों को रुचि के अनुसार निर्णय में मदद करें।
13. हॉस्टल संचालक सुनिश्चित करें कि परिसर नशे, हिंसा या उत्पीड़न से मुक्त हो और छात्र-छात्राओं को सुरक्षित वातावरण मिले।
14. हॉस्टलों में छत, बालकनी, पंखे जैसी सेफ्टी डिवाइस लगें ताकि आत्महत्या रोग
15. कोटा, जयपुर, चेन्नई, दिल्ली जैसे केंद्रों में नियमित काउंसलिंग और शिक्षण निगरानी के विशेष प्रयास हों।