सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: पत्नी को गुजारा भत्ता देने का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक महिला को अपने पति के साथ रहने के आदेश का पालन न करने पर भी भरण-पोषण का अधिकार मिल सकता है, यदि उसके पास ऐसा करने का वैध कारण हो। यह निर्णय झारखंड के एक दंपति के मामले में दिया गया, जहां पत्नी ने पति पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था। अदालत ने पति को पत्नी को प्रति माह 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। जानें इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसके कानूनी पहलुओं के बारे में।
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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: पत्नी को गुजारा भत्ता देने का अधिकार

महिला के भरण-पोषण का अधिकार


सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि यदि एक महिला अपने पति के साथ रहने के आदेश का पालन नहीं करती है, तो भी उसे भरण-पोषण का अधिकार मिल सकता है, बशर्ते उसके पास ऐसा करने का वैध कारण हो।


सीजेआई संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस कानूनी विवाद का समाधान किया कि क्या पति, पत्नी द्वारा साथ रहने के आदेश का पालन न करने पर गुजारा भत्ता देने से मुक्त हो सकता है।


पीठ ने स्पष्ट किया कि इस मामले में कोई कठोर नियम नहीं हो सकता और यह हमेशा मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। उन्होंने कहा कि यह व्यक्तिगत मामले के तथ्यों और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर तय किया जाएगा कि क्या पत्नी के पास पति के साथ रहने से इनकार करने का वैध कारण है।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'इस संबंध में कोई सख्त नियम नहीं हो सकता और यह निश्चित रूप से प्रत्येक विशेष मामले में प्राप्त होने वाले विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर होना चाहिए।' यह निर्णय झारखंड के एक दंपति के मामले में दिया गया, जिनका विवाह 2014 में हुआ था और वे 2015 में अलग हो गए।


पति ने पारिवारिक अदालत में दाम्पत्य अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की, जबकि पत्नी ने आरोप लगाया कि पति ने उसे प्रताड़ित किया और दहेज की मांग की। पारिवारिक अदालत ने पति के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन पत्नी ने आदेश का पालन नहीं किया और गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर की।


पारिवारिक अदालत ने पति को पत्नी को प्रति माह 10,000 रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया। पति ने इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जहां पत्नी को भरण-पोषण का हकदार नहीं माना गया। पत्नी ने शीर्ष अदालत में अपील की, जिसने उसके पक्ष में फैसला सुनाया।


शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय को अपने निष्कर्षों को इतना महत्व नहीं देना चाहिए था। अदालत ने यह भी कहा कि महिला को घर में उचित सुविधाएं नहीं दी गईं, जो दुर्व्यवहार का संकेत है। अंततः, शीर्ष अदालत ने पारिवारिक अदालत के आदेश को बरकरार रखा और पति को पत्नी को भरण-पोषण देने का निर्देश दिया।