सुप्रीम कोर्ट का कुपवाड़ा मामले में सीबीआई जांच का आदेश, मानवाधिकारों का उल्लंघन उजागर

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में एक पुलिस कांस्टेबल के साथ हुए अमानवीय अत्याचार की जांच के लिए सीबीआई को आदेश दिया है। अदालत ने राज्य प्रशासन को पीड़ित को 50 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश भी दिया। इस मामले में स्वतंत्र जांच और आरोपी अधिकारियों की गिरफ्तारी का आदेश दिया गया है। कांस्टेबल ने आरोप लगाया है कि उसे हिरासत में क्रूरता से प्रताड़ित किया गया। इस फैसले ने जम्मू-कश्मीर पुलिस के कार्यों पर सवाल उठाए हैं और न्यायपालिका की सक्रियता को दर्शाया है।
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सुप्रीम कोर्ट का कुपवाड़ा मामले में सीबीआई जांच का आदेश, मानवाधिकारों का उल्लंघन उजागर

सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख

हिरासत में प्रताड़ना और मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों पर समय-समय पर गंभीर सवाल उठते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर से एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जिसमें एक पुलिस कांस्टेबल के साथ कथित अत्याचार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य प्रशासन और पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में स्थित ज्वाइंट इंटरोगेशन सेंटर में एक पुलिस हेड कांस्टेबल के साथ हिरासत के दौरान किए गए अमानवीय अत्याचार की जांच के लिए सीबीआई को आदेश दिया है। इसके साथ ही, जम्मू-कश्मीर प्रशासन को पीड़ित कांस्टेबल को 50 लाख रुपये मुआवजा देने का निर्देश भी दिया गया है.


स्वतंत्र जांच और गिरफ्तारी का आदेश

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने न केवल इस मामले की स्वतंत्र जांच का आदेश दिया है, बल्कि आरोपी अधिकारियों की गिरफ्तारी का भी निर्देश दिया है। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि इस मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट सितंबर 2025 तक कोर्ट में पेश की जाए.


कांस्टेबल का दर्दनाक अनुभव

याचिकाकर्ता के अनुसार, वह फरवरी 2023 में बारामूला में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात था। उसे वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गया था। कांस्टेबल का आरोप है कि 20 से 26 फरवरी 2023 के बीच उसे कुपवाड़ा के संयुक्त पूछताछ केंद्र में बंधक बनाकर क्रूरता से प्रताड़ित किया गया। उसके साथ मारपीट, बिजली के झटके, और अन्य अमानवीय कृत्य किए गए। उसकी स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि उसे अस्पताल में मृतप्राय स्थिति में भर्ती कराया गया, जहां आपातकालीन सर्जरी के जरिए उसकी जान बचाई गई.


कानूनी कार्रवाई में बाधा

रिपोर्टों के अनुसार, कांस्टेबल की पत्नी ने कुपवाड़ा थाने में एफआईआर दर्ज कराने के लिए शिकायत दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बाद में कानूनी नोटिस भेजा गया, लेकिन आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय कांस्टेबल के खिलाफ आत्महत्या के प्रयास का मामला दर्ज कर दिया गया.


सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

पीड़ित कांस्टेबल ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया कि इस मामले की जांच जम्मू-कश्मीर पुलिस की बजाय सीबीआई या विशेष जांच दल के माध्यम से की जाए। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल जम्मू-कश्मीर पुलिस के कार्यों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह न्यायपालिका की सक्रियता का भी उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह फैसला सुरक्षा एजेंसियों के भीतर जवाबदेही सुनिश्चित करने और नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है.


राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ

अदालत के फैसले के बाद इस मुद्दे पर राजनीति भी तेज हो गई है। पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जम्मू-कश्मीर के सभी संयुक्त पूछताछ केंद्रों में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि एक व्यक्ति को इतनी बेरहमी से प्रताड़ित किया गया कि उसके गुप्तांगों को क्षत-विक्षत कर दिया गया। यह जम्मू-कश्मीर में हिरासत में दुर्व्यवहार की भयावहता को दर्शाता है.