सीजेआई गवई पर जूता फेंकने वाले वकील ने जताया कोई पछतावा नहीं

दिल्ली के वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर जूता फेंकने की कोशिश के बाद अपने कार्य के लिए कोई पछतावा नहीं जताया। उन्होंने कई मुद्दों को उठाया, जिनमें सुप्रीम कोर्ट का बुलडोजर न्याय के खिलाफ फैसला शामिल है। किशोर ने सीजेआई की गरिमा और सरकारी कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि न्यायपालिका और कार्यपालिका की भूमिकाएं अलग होनी चाहिए। इस घटना ने न्याय व्यवस्था और उसके कार्यों पर एक महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है।
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सीजेआई गवई पर जूता फेंकने वाले वकील ने जताया कोई पछतावा नहीं

मुख्य न्यायाधीश पर हमले के पीछे के कारण

दिल्ली के मयूर विहार के निवासी 71 वर्षीय वकील राकेश किशोर ने मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई पर जूते से हमले की कोशिश के बाद अपने कार्य के लिए कोई पछतावा नहीं जताया। उन्होंने कई मुद्दों को उठाया, जिन्हें उन्होंने सीजेआई पर हमले के माध्यम से उजागर करने की आवश्यकता समझी। उनकी प्रमुख शिकायतों में से एक सुप्रीम कोर्ट का वह निर्णय था, जो बुलडोजर न्याय के खिलाफ था। किशोर ने मुख्य न्यायाधीश की दलित पहचान पर भी सवाल उठाने का प्रयास किया।


सीजेआई की गरिमा और सरकारी कार्रवाई पर सवाल

किशोर ने कहा कि सीजेआई को 'माई लॉर्ड' कहा जाता है और उन्हें इस पद की गरिमा को समझना चाहिए। उन्होंने सवाल किया कि क्या उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा बरेली में सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना गलत था। यह टिप्पणी उस समय की है जब अधिकारियों ने 'आई लव मुहम्मद' लिखे बैनर को हटाने के बाद मुसलमानों के विरोध प्रदर्शन का सामना किया था।


मुख्य न्यायाधीश के विचारों पर प्रतिक्रिया

किशोर ने मुख्य न्यायाधीश गवई के हालिया व्याख्यान का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि वे मॉरीशस में जाकर कहें कि देश बुलडोजर से नहीं चल सकता, तो यह एक महत्वपूर्ण बात है। उन्होंने यह भी कहा कि कार्यपालिका या सरकार को एक ही समय में न्यायाधीश, जूरी और जल्लाद की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने एक पूर्व फैसले की सराहना करते हुए कहा था कि भारतीय न्याय व्यवस्था कानून के शासन पर आधारित है, न कि बुलडोजर के शासन पर।