सियाचिन में हिमस्खलन से तीन भारतीय सैनिकों की मौत, बचाव कार्य जारी

लद्दाख के सियाचिन बेस कैंप में एक विनाशकारी हिमस्खलन ने तीन भारतीय सैनिकों की जान ले ली। बचाव दल जीवित बचे लोगों की तलाश में जुटा है। यह घटना सियाचिन क्षेत्र में घातक हिमस्खलनों की श्रृंखला में एक और कड़ी है, जो सैनिकों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। सियाचिन ग्लेशियर की कठिन परिस्थितियों और अत्यधिक ऊँचाई के कारण यहाँ तैनात सैनिकों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जानें इस घटना के बारे में और क्या कदम उठाए जा रहे हैं।
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सियाचिन में हिमस्खलन से तीन भारतीय सैनिकों की मौत, बचाव कार्य जारी

सियाचिन बेस कैंप में हिमस्खलन की घटना

लद्दाख के सियाचिन बेस कैंप में एक गंभीर हिमस्खलन हुआ, जिसमें तीन भारतीय सैन्यकर्मियों की दुखद मृत्यु हो गई। बचाव दल इस समय जीवित बचे लोगों की तलाश और इस प्राकृतिक आपदा के प्रभाव का आकलन करने में जुटा हुआ है। नियंत्रण रेखा (एलओसी) के उत्तरी सिरे पर लगभग 20,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित सियाचिन ग्लेशियर अपने कठिन भूभाग और चरम मौसम के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का तापमान अक्सर -60 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है, जिससे जीवित रहना और सैन्य अभियान चलाना अत्यंत कठिन हो जाता है। इस क्षेत्र में तैनात सैनिकों के लिए हिमस्खलन एक सामान्य खतरा है। 


घातक हिमस्खलनों की श्रृंखला

यह हालिया घटना सियाचिन क्षेत्र में घातक हिमस्खलनों की एक और कड़ी है। 2021 में, सब-सेक्टर हनीफ में एक हिमस्खलन हुआ था, जिसमें दो सैनिकों की जान चली गई थी। इस त्रासदी के बावजूद, छह घंटे के कठिन अभियान के बाद कई अन्य सैनिकों और पोर्टरों को बचा लिया गया था। इसी तरह, 2019 में, 18,000 फीट की ऊँचाई पर एक चौकी के पास गश्त कर रहे चार सैनिकों और दो पोर्टरों की एक भीषण हिमस्खलन में जान चली गई थी। 3 फ़रवरी, 2016 को, 19,600 फीट की ऊँचाई पर एक और विनाशकारी हिमस्खलन में दस सैनिक दब गए थे, जिनमें लांस नायक हनमनथप्पा कोप्पड़ भी शामिल थे, जो शुरुआत में तो बच गए थे, लेकिन कुछ दिनों बाद उनके कई अंग फेल हो गए थे। 


सियाचिन ग्लेशियर की चुनौतियाँ

सियाचिन ग्लेशियर को अक्सर दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धक्षेत्र कहा जाता है, जहाँ सैनिकों को दुश्मन की कार्रवाई के अलावा शीतदंश, हाइपोक्सिया और हिमस्खलन जैसे कई खतरों का सामना करना पड़ता है। हाल की त्रासदी इस रणनीतिक क्षेत्र की रक्षा में लगे भारतीय सैनिकों के सामने मौजूद मौजूदा जोखिमों को उजागर करती है। अधिकारियों ने बचाव अभियान को तेज़ कर दिया है और ग्लेशियर की कठोर परिस्थितियों से निपटने के लिए विशेष टीमों को तैनात किया है। भारतीय सेना इस ख़तरनाक क्षेत्र में तैनात कर्मियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल की समीक्षा कर रही है।