सिकटा विधानसभा सीट: 2025 के चुनाव में जातीय समीकरणों का प्रभाव
सिकटा विधानसभा सीट का महत्व
बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित सिकटा विधानसभा सीट को राज्य की प्रमुख और चर्चित सीटों में से एक माना जाता है। यह सीट वाल्मीकि नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यहां के मतदाताओं के निर्णय पर जातीय समीकरणों के साथ-साथ शिक्षा, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाएं और आधारभूत विकास जैसे मुद्दे भी प्रभाव डालते हैं। सिकटा विधानसभा सीट पर दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होगा, जबकि वोटों की गिनती 14 नवंबर 2025 को की जाएगी।
चुनावी मुकाबला
इस बार जेडीयू ने समृद्ध वर्मा को सिकटा विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं, सीपीआई-एमएल ने वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता को इस सीट पर टिकट दिया है। हालांकि, इस बार किसी एक पार्टी के लिए जीत हासिल करना आसान नहीं होगा। जातीय समीकरणों के साथ-साथ उम्मीदवार की स्थानीय समस्याओं पर पकड़ और व्यक्तिगत लोकप्रियता भी महत्वपूर्ण होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 में यह सीट किस पार्टी के खाते में जाएगी।
सिकटा विधानसभा सीट का इतिहास
सिकटा विधानसभा सीट का इतिहास काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। 2010 में निर्दलीय दिलीप वर्मा ने इस सीट पर जीत हासिल कर सभी को चौंका दिया था। 2015 में जेडीयू के खुर्शीद अहमद ने जीत दर्ज की और दोबारा विधायक बने। 2020 के चुनाव में भाकपा के वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता ने जेडीयू के खुर्शीद अहमद को हराकर विपक्ष की ताकत को बढ़ाया।
जातीय समीकरणों का प्रभाव
सिकटा विधानसभा सीट पर यादव और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, जिससे महागठबंधन का यहां पर दबदबा मजबूत रहता है। इसके अलावा, कोइरी, रविदाय और ब्राह्मण जातियां भी चुनाव परिणामों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या 2025 में यह समीकरण एनडीए के पक्ष में जाएगा या महागठबंधन की पकड़ बनी रहेगी।
