सासाराम विधानसभा सीट: बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण मुकाबला
सासाराम विधानसभा सीट का महत्व
बिहार की राजनीतिक परिदृश्य में सासाराम विधानसभा क्षेत्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। यह सीट न केवल राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और जातीय समीकरणों का भी एक प्रमुख केंद्र है। पिछले कुछ वर्षों में, सासाराम विधानसभा क्षेत्र कई राजनीतिक बदलावों का गवाह बन चुका है। यहां पर विभिन्न दलों की रणनीतियां, जातीय समीकरण और उम्मीदवारों की छवि मिलकर चुनाव परिणामों को प्रभावित करती हैं। इस बार यहां एक दिलचस्प चुनावी मुकाबला देखने को मिलेगा।
सासाराम सीट से उम्मीदवार
सासाराम विधानसभा क्षेत्र से राजद के उम्मीदवार सत्येंद्र साह, बसपा के पूर्व विधायक डॉ. अशोक सिंह और जन सुराज के विनय सिंह चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा, एनडीए गठबंधन से आरएलएम की उम्मीदवार स्नेहा लता कुशवाहा भी चुनाव लड़ रही हैं। आम आदमी पार्टी से अरमान अहमद खान और एनसीपी से आशुतोष सिंह सहित कई स्थानीय उम्मीदवार भी इस चुनाव में शामिल हैं।
वर्तमान समीकरण
इस विधानसभा क्षेत्र में कुशवाहा जाति का प्रभाव काफी अधिक है। 1990 से 2015 तक इस सीट पर कुशवाहा जाति के अलावा किसी अन्य उम्मीदवार को जीत नहीं मिली। यहां अनुसूचित जाति के मतदाताओं की हिस्सेदारी 17.55 प्रतिशत है, जबकि मुस्लिम मतदाता 15.20 प्रतिशत हैं। पासवान समाज का योगदान 3.1 प्रतिशत और यादव मतदाताओं की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत है। इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3,39,218 है।
सासाराम सीट का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1962 और 1967 में इस सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने दो बार जीत हासिल की। भाजपा ने इस सीट पर सबसे अधिक 5 बार जीत का परचम लहराया है। 2000 में आरजेडी ने पहली बार सफलता प्राप्त की, और इसके बाद 2015 और 2020 के चुनावों में भी आरजेडी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की। जनता दल भी इस सीट से दो बार विधायक बनाने में सफल रहा है, जबकि जेडीयू अभी तक इस सीट पर जीत नहीं हासिल कर पाई है।
